वर्ष 2015 विदा हो रहा है
,पर पहले ही इसमें एक महापुरुष विदा हो गया
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जो हम चाहते मानवता पर
चलना
कुछ अलग तरह से हमें जीना
होगा बदलना चाहते जग को ,नेतृत्व हेतु
नस्ल ,देश ,जाति से ऊपर उठना होगा
जाति , नस्ल आधारित ये विश्व बना
भाषा एवं देश की सीमाओं में ये बँटा
सुख नहीं दिया इन सबने जीवन को
हमने इसमें बदलाव का दायित्व चुना
तोड़ देनी होगीं ये भ्रम की सीमायें
सुख समृध्दि एक सी करनी होगी
वेदना क्या होती दूसरे के तन मन की
अपने पर बिता ये कल्पना करनी होगी
अपने लिए भोग-उपभोग की प्रवृत्ति
मान सफलता की अपनी जीवनशैली
ये तारीफ़ नहीं ,ये हैं अपनी कमजोरी
नई आधुनिक शैली ये बदलनी होगी
--राजेश जैन
29-12-2015
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