कॉमेडियन
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फिल्मों ,टीवी कमेडी सीरियलों में कॉमेडियन और सर्कस में जोकर अपनी अभिनय कला से दर्शकों को हँसाया करते हैं। इन्होंने हास्य को अपना व्यवसाय बनाया होता है। व्यवसायिकता के इस दौर में ,इन्होंने फूहड़ता और अश्लीलता पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है। जो कम प्रयासों और कम समय में दर्शकों को ज्यादा लोटपोट करता है। दुर्भाग्य यह है कि व्यस्त ज़माना भी ऐसे हास्य को पसंद कर लेता है। परिणाम यह होता है , जो फूहड़ता और अश्लीलता समाज में से कम की जानी चाहिए वह समाज में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है , ज्यादा व्यापक होती जाती है।
आलेख का उद्देश्य थोड़ा अलग है। लेखक प्रमुख रूप से यह प्रश्न करना चाहता है कि क्या हास्य भी धन के बदले लिया और दिया जाना चाहिए? क्या , हम स्वयं बिना धन अपेक्षा के गरिमापूर्ण ढंग से किसी को हँसा भी नहीं सकते हैं? लेखक मानता है , बिना अलग से समय खर्च किये , बिना फूहड़ता के अपने दैनिक कार्यों में घर , कार्यालय और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में अपने व्यवहार और शब्दों से आसपास परिचितों या अपरिचितों को हम हँसा सकते हैं। इसके लिए हमें थोड़ा प्रयास करना होता है , हम मिलनसार और थोड़ा हँसमुख होना अपना स्वभाव और आदत बना सकते हैं।
उदाहरण के लिए , एक दस वर्षीय पड़ोस की बच्ची है , नफीसा , मूक बघिर है। लेखक नफीसा को , किसी भी दिन दैनिक क्रम में जब पहली बार देखता है , जयहिंद की मुद्रा में में उसे अभिवादन करता है। बोलने में असमर्थ वह बेटी , हँसते हुए इसका प्रतिउत्तर इसी मुद्रा में देती है। कहाँ , पैसा लगा , कहाँ फूहड़ता लगी ? शब्द भी नहीं फिर भी कुछ क्रियाओं में एक असमर्थ बच्चे को थोड़ा हास्य का अवसर मिला।
--राजेश जैन
08-12-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman/
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फिल्मों ,टीवी कमेडी सीरियलों में कॉमेडियन और सर्कस में जोकर अपनी अभिनय कला से दर्शकों को हँसाया करते हैं। इन्होंने हास्य को अपना व्यवसाय बनाया होता है। व्यवसायिकता के इस दौर में ,इन्होंने फूहड़ता और अश्लीलता पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है। जो कम प्रयासों और कम समय में दर्शकों को ज्यादा लोटपोट करता है। दुर्भाग्य यह है कि व्यस्त ज़माना भी ऐसे हास्य को पसंद कर लेता है। परिणाम यह होता है , जो फूहड़ता और अश्लीलता समाज में से कम की जानी चाहिए वह समाज में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है , ज्यादा व्यापक होती जाती है।
आलेख का उद्देश्य थोड़ा अलग है। लेखक प्रमुख रूप से यह प्रश्न करना चाहता है कि क्या हास्य भी धन के बदले लिया और दिया जाना चाहिए? क्या , हम स्वयं बिना धन अपेक्षा के गरिमापूर्ण ढंग से किसी को हँसा भी नहीं सकते हैं? लेखक मानता है , बिना अलग से समय खर्च किये , बिना फूहड़ता के अपने दैनिक कार्यों में घर , कार्यालय और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में अपने व्यवहार और शब्दों से आसपास परिचितों या अपरिचितों को हम हँसा सकते हैं। इसके लिए हमें थोड़ा प्रयास करना होता है , हम मिलनसार और थोड़ा हँसमुख होना अपना स्वभाव और आदत बना सकते हैं।
उदाहरण के लिए , एक दस वर्षीय पड़ोस की बच्ची है , नफीसा , मूक बघिर है। लेखक नफीसा को , किसी भी दिन दैनिक क्रम में जब पहली बार देखता है , जयहिंद की मुद्रा में में उसे अभिवादन करता है। बोलने में असमर्थ वह बेटी , हँसते हुए इसका प्रतिउत्तर इसी मुद्रा में देती है। कहाँ , पैसा लगा , कहाँ फूहड़ता लगी ? शब्द भी नहीं फिर भी कुछ क्रियाओं में एक असमर्थ बच्चे को थोड़ा हास्य का अवसर मिला।
--राजेश जैन
08-12-2015
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