Sunday, November 29, 2015

निर्दया ....

निर्दया ....
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बेटी ने फोन पर पूछा , पापा , किसी अभागी की तस्वीर और उस पर ऐसी कल्पना घड़ना क्या उचित है ? (कल की पोस्ट के संबंध में )
लेखक ने उत्तर दिया उचित है , यदि यह समाज विश्लेषण या समीक्षा लक्ष्य से लेखकीय पोस्ट का अंश हो।
आगे स्पष्टीकरण यह है , जिस तरह चाँवल की हाँडी में सैंपल के लिए कुछ चाँवल ले पके या अधपके का जायजा लिया जाता है , वैसे ही समाज में जगह जगह बिखरे दृश्य में से एक उठा कर देखना ,मानव सभ्यता अभी पकी है अधपकी है , देखा जाता है। निर्दया की कल की पोस्ट ऐसा एक सामाजिक दृश्य है जो दुःखद तथ्य बयान करता है कि सभ्यता अभी अधपकी है।
अन्यथा ऐसा नहीं होता कोई निर्भया बन अकाल मार दी जाती। और कोई समाज निर्दया से बाईस -चौबीस वर्ष की आयु में 8 अरब मनुष्यों के बीच , नितांत अकेली हो नारकीय जीवन को विवश हो जाती । वस्तुतः ,'निर्दया' वह दृश्य है जो गौर करने पर कई प्रश्न खड़े करता है।  जिनमें से एक प्रश्न है -
क्या उनकी माँ -पिता होने की पात्रता है , जो नारी-पुरुष , बच्चे पैदा कर रहे हैं ?
जैसा पहले था ,आयु हो जाने पर विवाह कर दिया जाना , फिर उनका माँ-पिता बन जाना , इतना सरल यह विषय अब नहीं रह गया है। अब सामाजिक चुनौतियाँ बढ़ गई हैं , जिनमें हमारी संतान का जीवन सुखद हो , इसके लिए सही , प्रेरणा , ज्ञान और सँस्कार हमारी संतान को मिलना चाहिए , जिससे बुराई की समझ , बुराई न करने करने की समझ , और बुराई से बच सकने की समझ उसे आनी चाहिए। ऐसा लालन-पालन कोई सुनिश्चित नहीं कर सकता है तो कम से कम संतान जन्मने की जल्दबाज़ी नहीं करना चाहिए।
अगर निर्दया के माँ-पिता ने यह जिम्मेदारी निभाई होती तो युवावस्था में सड़कों पर वह लावारिस नहीं रह जाती। ऐसी करुणा की तस्वीर से , संस्कारित कोई पुरुष शारीरिक संबंध नहीं करता , ना उसे कोई यौन रोग दे देता , न उससे अपने में लगा कोई यौन रोग वाहक बन जाता।
वास्तव में अगर पात्रता के बिना , कोई संतान पैदा करता है , तो उसे सुखद जीवन का विवेक देने की जिम्मेदारी समाज पर आ जाती है और लेखक की समझ से हमारा समाज इतना सक्षम नहीं हुआ है कि मनुष्य जीवन की इस मूल-भूत अपेक्षा की वह पूर्ती कर सके , अर्थात
'निर्दया ..... " दृश्य कहता है , मानव सभ्यता अभी अधपकी है।
(सृजन चौक , जबलपुर अपडेट - आज प्रातः निर्दया के गंदे कपड़े तो चौक पर विद्यमान थे , किन्तु निर्दया वहाँ दृष्टव्य नहीं थी। )
--राजेश जैन
30-11-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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