5. दहेज
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बेटी या बेटा मनुष्य होने से समान हैं। परिवार में बँधने के साथ ,पति और पत्नी दोनों को साथ रहना होता है। दोनों विवाह पूर्व अलग-अलग परिवार के बच्चे होते हैं, दोनों का साथ तभी हो सकता है जब विवाह उपरान्त एक ,दूसरे के साथ किसी के घर में जाये। पुरातन संस्कृति से इस हेतु पत्नी को अपना पूर्व परिवार छोड़ , पति के परिवार में हिस्सा बनना होता है। ऐसे में किसी दहेज का प्रश्न होना नहीं चाहिये क्योंकि यह समाज सम्मत व्यवस्था है। एक बीस -पच्चीस वर्ष का पला बढ़ा सदस्य ,दूसरे परिवार में रहने को दे देना वैसे ही बहुत बड़ा त्याग तो वैसे ही वधू परिवार ने रीत -संस्कृति निभाने के लिए कर दिया फिर दहेज क्यों ? यदि इतने बड़े त्याग का मान आज की धन पुजारी प्रवृत्ति नहीं कर सकती है तो उसके लिए भी धन की भाषा में बात करनी चाहिए ।
वधू पक्ष ने बेटी के लालन-पालन में अपनी आय का एक अच्छा हिस्सा उसे बीस-पच्चीस वर्ष की आयु तक बड़ा करने में किया होता। एक वयस्क दुल्हन में वह धन अदृश्य रूप में समाया ही होता है। अपनी लाड़ली संतान का त्याग और यह धन तो अनायास वर परिवार को मिलता ही है। फिर क्यों -हम सभ्य हुए समाज में कलंक के रूप में दहेज रुपी अन्याय का प्रचलन आज भी बना हुआ है ?
(इवेंट में हिस्सा ले रहे आदरणीयों के परामर्श अनुसार यह आलेख ,एडिट किया जाता रहेगा )
--राजेश जैन
04-11-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman
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बेटी या बेटा मनुष्य होने से समान हैं। परिवार में बँधने के साथ ,पति और पत्नी दोनों को साथ रहना होता है। दोनों विवाह पूर्व अलग-अलग परिवार के बच्चे होते हैं, दोनों का साथ तभी हो सकता है जब विवाह उपरान्त एक ,दूसरे के साथ किसी के घर में जाये। पुरातन संस्कृति से इस हेतु पत्नी को अपना पूर्व परिवार छोड़ , पति के परिवार में हिस्सा बनना होता है। ऐसे में किसी दहेज का प्रश्न होना नहीं चाहिये क्योंकि यह समाज सम्मत व्यवस्था है। एक बीस -पच्चीस वर्ष का पला बढ़ा सदस्य ,दूसरे परिवार में रहने को दे देना वैसे ही बहुत बड़ा त्याग तो वैसे ही वधू परिवार ने रीत -संस्कृति निभाने के लिए कर दिया फिर दहेज क्यों ? यदि इतने बड़े त्याग का मान आज की धन पुजारी प्रवृत्ति नहीं कर सकती है तो उसके लिए भी धन की भाषा में बात करनी चाहिए ।
वधू पक्ष ने बेटी के लालन-पालन में अपनी आय का एक अच्छा हिस्सा उसे बीस-पच्चीस वर्ष की आयु तक बड़ा करने में किया होता। एक वयस्क दुल्हन में वह धन अदृश्य रूप में समाया ही होता है। अपनी लाड़ली संतान का त्याग और यह धन तो अनायास वर परिवार को मिलता ही है। फिर क्यों -हम सभ्य हुए समाज में कलंक के रूप में दहेज रुपी अन्याय का प्रचलन आज भी बना हुआ है ?
(इवेंट में हिस्सा ले रहे आदरणीयों के परामर्श अनुसार यह आलेख ,एडिट किया जाता रहेगा )
--राजेश जैन
04-11-2015
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