Thursday, December 3, 2015

निर्दया-निर्भया

निर्दया-निर्भया
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कैसा लगता है , जब कभी इतनी बड़ी दुनिया में हम पर विपत्ति होती है जिसमें हमें ऐसा लगता है , कोई भी हमारा साथ नहीं दे रहा है। जीवन में ,बहुत समय तो ऐसा नहीं होता है। लेकिन जब कभी ऐसा होता है , विचित्र लगती है दुनिया , जिसमें हम 8 अरब मनुष्यों के बीच , नितांत अकेले होते हैं।
कुछ दुर्भाग्यशाली जीवन ऐसे होते हैं , जो हमेशा विपत्ति में होते हैं , और 8 अरब में पूरे जीवन , नितांत अकेलेपन से जूझते हैं। कुछ तो ख़राब , उनकी स्व-करनी के कारण होता है। कुछ को ऐसी अवस्था में धकेलने के कारण , अन्य होते हैं।
 'निर्भया' , 'निर्दया' को देख पढ़ दुःख सभी को होता है। सोचता हूँ  निर्दया-निर्भया के साथ जिन्होंने बुरा किया और इन्हें इतनी भयानक मौत , भयानक जीवन को विवश किया , क्या उन्हें यह दुःखद परिणीति पर , स्वयं पर क्षोभ - पछतावा , दुःख नहीं होता होगा , मुझे लगता है , जरूर होता होगा। विचार करें , न करें ऐसे अत्याचार , घिनौने कर्म हम किसी के साथ। हमारा जीवन , गौरव का विषय होना चाहिए , क्षोभनीय या पछ्तावों का नहीं होना चाहिए।
--राजेश जैन
04-12-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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