Sunday, November 29, 2015

सृजन चौक पर पतन की तस्वीर


सृजन चौक पर पतन की तस्वीर
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16 दिस. 2012 पर घिनौने अत्याचार और हिंसा की शिकार निर्भया , 2012 के बाद के कैलंडर में इस संसार में जीवित नहीं रह गई। सर्वप्रथम निर्भया को श्रध्दा-सुमन। निर्भया जैसे अनेक काण्ड अब भी होते हैं , स्पष्ट यह दुर्भाग्य कहते हैं कि ना यह समाज बदला , ना ही पर्याप्त कोई व्यवस्था तीन वर्षों में हो सकी है।
16 दिस. 2012 के पहले तक शायद तस्वीरों में दिखाई यह युवती भी किसी परिवार में सामान्य जीवन यापन करती रही होगी। 16 दिस. 2012 को जैसा निर्भया पर अत्याचार हुआ , शायद उसी रात इस पर भी उससे मिलता जुलता अत्याचार हुआ होगा। दुःखद दानवीयता के कष्ट कुछ दिन सह निर्भया तो कष्टों से ऊपर उठ गई थी। लेकिन निर्दयता ' का सामाजिक प्रतिबिम्ब यह दुर्भाग्यशाली युवती कष्टों को सहने को विवश , सृजन चौक जबलपुर में कुछ दिनों से दिखाई देती है।
देश की इस दुर्भाग्यशाली बेटी को इस आलेख में हमारे निर्दयी समाज का द्योतक 'निर्दया' नाम दिया जा रहा है।  8 अरब मानव जनसंख्या वाले विश्व में अपनी मानसिक -शारीरिक पीड़ाओं के साथ सृजन चौक पर खुले आकाश के नीचे 'निर्दया' ,नितांत अकेली ,गहन विवशता का जीवन जी रही है। लेखक ,सुबह रिज रोड पर वॉकिंग को जाते आते प्रतिदिन इसका साक्षी हो रहा है । लेखक को " 'सृजन' चौक पर -सामाजिक , नैतिक 'पतन' की जीती जागती तस्वीर " का यह दृश्य अजीब संयोग लगा। ये तस्वीरें , हमारे आचरण शायद बदल सकें ,इस दृष्टि से उतारी गईं हैं।  
किसी परिवार से ना मालूम किन परस्थितियों में टूट ,निर्दया अकेली ऐसी लावारिस हो गई है। ना मालूम कितने देह-दानवों की शारीरिक भूख ने निर्दया को वीरान रातों में लील लिया है। यौन रोग उनमे से कोई इसे दे गया और अब ना मालूम कितने  इसके शारीरिक संपर्क से यौन रोग के वाहक होकर ,यौन रोग परिवार समाज में फैला रहे हैं। हालाँकि वह स्वच्छ रहने लगे , रोग उपचार करा दिए जा सकें , रहने का आश्रय मिल सके तो वह तीस चालीस वर्षों जी सकती है। किन्तु निर्दया - ना तो नहाती है , ना ही उसके रोगों का उपचार ,उसे मिल सकता है। यह जीवन अभिशाप उसे इसी तरह रास्तों में बिताना होगा। फिर निर्दया पर दया कोई और तो ना कर पायेगा , मौत किसी दिन उसे इस जीवन अभिशाप से मुक्त दिला जायेगी।
(लेखक ने निर्दया की तस्वीर के लिए खड़े होने कहा तो वह खड़ी हुई , उसने भोजन के लिए दिए रुपयों को लेकर रख लिये , लगता है ,उसने अभी मानसिक संतुलन नहीं खोया है , वह कोई उत्पात मचाती भी नहीं दिखती है। )
अगर हम अपने में और समाज में परिवर्तन नहीं लायेंगे तो निर्भया और निर्दया की दुःखद तस्वीरें निरंतर बनती रहेंगीं।  इतिहास के पृष्ठों पर , जब जब मानव सभ्यता पर इस पीढ़ी के योगदान के बारे में लिखा जाएगा  'हमारी सारी उन्नति और हमारा सुविधा जनक जीवन व्यर्थ'  ही वर्णित किया जायेगा।।
--राजेश जैन
29-11-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman/
 

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