Monday, December 21, 2015

क्या कहेंगे इसे , आप ? "शीला की जवानी .... "


क्या कहेंगे इसे , आप ?  "शीला की जवानी .... "
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स्वतंत्रता के बाद देश और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाये जा सकते थे , यदि देश में फिल्म इंडस्ट्रीज ने अपने सामाजिक दायित्व निभाये होते।
* दुर्भाग्य इस प्रचार माध्यम ने जो घर-घर ,धीरे-धीरे पैठ बढ़ाता गया , में अय्याश प्रवृत्ति के व्यक्तियों का बोलबाला रहा।
धार्मिक गुरु ,सच्चे सामाज सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम के हीरो पृष्टभूमि में धकेल दिए गए और फ़िल्मी लोग हीरो बन सामने हो गए। घर-घर पहुँचे इनके हल्के आचरण कर्म और विचारों ने , हमारी भव्य संस्कृति और भारतीय संस्कारों की धवलता और प्रखरता को गँदला और निस्तेज कर दिया। फिल्मों से देश में नारी और पुरुष को सिर्फ लड़का और लड़की या प्रेमी और प्रेमिका से देखे जाने की दृष्टि में सीमित कर दिया।  आडंबर और धन को देशवासियों का ध्येय और सपना बना दिया।
*दुर्भाग्य यह रहा , कहाँ से विषधारा प्रवाहित हो रही है , या तो हम समझ नहीं पाये , किन्हीं किन्ही ने समझा भी तो वे विषधारा की तीव्रता पर लगाम नहीं कस पाये।
* दुर्भाग्य एक और , यह भी रहा जो थोड़ी अच्छी और आदर्श बातें फिल्मों में रखना फिल्मकारों की लाचारी थी , उसे देख कर भी हम अपने पारिवारिक ,सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्यों की प्रेरणा नहीं ले सके। फिल्मों से हमने सिर्फ "शीला की जवानी .... " तरह का मनोरंजन , दृष्टिकोण और जीवनशैली ग्रहण की।
* दुष्परिणाम यह रहा चारों और भ्रष्टाचार , गद्दारी , निर्भया के तरह के रेप केस की विषबेल पनपते गई। नारी तो असुरक्षित हुई ही , सद्पुरुषों सज्जनता और देश की प्रतिभा का सर्वाइवल देश में कठिन हो गया
--राजेश जैन
21-12-2015

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