Tuesday, December 1, 2015

'निर्दया' ... निरंतर

'निर्दया'  ... निरंतर
----------------------
आधुनिकता , विकास , उन्नति , और सुविधा संपन्नता ,क्या मनुष्य क्षमता को कमजोर करती है ? लेखक को लगता है , पुरातन , पिछड़ा और जीवन विकटताओं से जूझता मानव ज्यादा शक्तिशाली और विशाल हृदय होता था। उसके घर-परिवार की चाहरदीवारियाँ तो कम मजबूत थी , लेकिन वह स्वयं ज्यादा मजबूत था। चाहरदीवारियाँ कमजोर होने की अनुभूति उसे थी , इसलिए अन्य कोई उसके घर-परिवार के सुख से ईर्ष्या न करे  इस हेतु  अपनी चाहरदीवारियाँ के बाहर भी खुशहाली के उपाय और व्यवस्था वह करता था। जीवन में सुख पाने की भावना सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रहती थी , बल्कि इस मानसिक संकीर्णता से उपर उठ वह अपने साथ ही ,अड़ोस-पड़ोस और समाज में अन्य के सुख प्रबंधों में भी सक्रिय रहता था।
'निर्दया' की जो तस्वीर पिछले तीन दिनों से लेखक देख और दिखाना चाह रहा है , उस प्रसंग में ही आज की आलेख की यह भूमिका है।
दरअसल ,सृजन चौक , सदर , कैंट जबलपुर का वह क्षेत्र है , जिसके आसपास जबलपुर के प्रतिष्ठित , उन्नत और संपन्न परिवार निवासरत हैं , आर्मी ऑफिसर्स के बँगले हैं , नर्मदा क्लब और टैगोर गार्डन में संभ्रांतों का आना जाना है , सदर में शॉपिंग परपोज़ से , विद्या अर्जन के लिए , सेंट अलोयसिस , सेंट थॉमस और सेंट जोसेफ कान्वेंट में बच्चे और उनके पेरेंट्स इस चौक से जाते-आते हैं।
लेकिन हम सब अपनी अपनी मजबूत चाहरदीवारियाँ के अंदर अपने सुख और सुरक्षा से संतुष्ट , बाहर सुंदर सृजन चौक पर 'निर्दया' के विद्रूप दृश्य के प्रति उदासीन हैं । निश्चित ही यह तर्क सही है , इस एक अभागी की सहायता से , समाज का कोढ़ नहीं मिट सकेगा , ना ही कुछ दान से उसका जीवन बन सकेगा।
पर क्या जबलपुर का संभ्रांत अपने भोग विलासिता में से कुछ समय निकाल , समाज और देश के सही प्रेरणाओं के लिए कोई मंचन , कोई सोच समझ शक्ति प्रदर्शित नहीं कर सकता जिससे हमारे ,देश समाज में जागृति बढ़े  कि अपने स्वार्थों से किसी को ऐसे अभागे जीवन की विवशता को कोई बाध्य हो ,हमारी जागरूकता से ऐसे प्रकरणों में कमी आ सकती है ।  लेखक मानता है कि जबलपुर को संस्कारधानी कहे जाने से जबलपुर वासियों का यह दायित्व बनता है ,वे देश और समाज को सही दिशा दिखलायें ।
--राजेश जैन
02-12-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

No comments:

Post a Comment