Wednesday, December 2, 2015

'निर्दया' - उपाय

'निर्दया' - उपाय
------------------
तस्वीर में दिखाई 'निर्दया' समाज संवेदनाहीनता की नारी तस्वीर है , पुरुष और विकलाँग भी गंदे चीथड़ों में , बिन स्नान ,रोगी हो घूमते , फुटपाथों में पड़े दिखाई पड़ते हैं। कारण पूर्व लेखों में उल्लेखित किया गया है " . वह परिवार जिसका यह जन्मा सदस्य है , जीवन सुखी जी सकने के सँस्कार ,शिक्षा देने में असमर्थ रहा है ". विशेषकर नारी प्रकरणों में देश के अन्य परिवारों की सँस्कार हीनता और गहन स्वार्थी प्रवृत्ति भी 'निर्दया' की अवस्था के लिए जिम्मेदार है। जिसके कारण असहाय , अकेली नारी के साथ उसका कोई सदस्य दैहिक शोषण करता है। ऐसी भटकी नारी के साथ यह सिलसिला कई कई बार दोहराया जाता है , फिर वह रोग ग्रस्त हो ऐसे बदरूप रहते रोग की पीड़ा भोगते कई साल सड़कों पर जीते , किसी दिन दम तोड़ देती है। एक 'निर्दया' ही अगर देश समाज में ऐसी हो तो उसकी मौत के साथ समस्या खत्म हो जाती है लेकिन दुर्भाग्य ऐसी अनेकों हैं।  उससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि नई 'निर्दया' बनने के कारण बने रहने वाले हैं ( "माँ-पिता बनने के पात्र बने बिना , हमारे देश में बच्चे पैदा करने का क्रम जारी रहेगा ") . और एक दुर्भाग्य यह भी है देश -समाज पर जब  यह समस्या आती है तो ऐसी कोई व्यापक व्यवस्था नहीं , जिसमें ये स्वच्छ रहे सकें , साफ़ कपड़े पहन सकें , पेट भर भोज्य पा सकें और रोगों का उपचार पा सकें।
स्पष्ट है कारण खत्म करने और समस्या होने पर निबटने दोनों के लिए जागृति बढ़ाने की आवश्यकता है।  ना तो समस्या कोई एक या कुछ से उत्पन्न हो रही है , ना ही कोई एक या कुछ के सीधे करने से (किसी एक दो को भोजन करवा देना ,उसका इलाज करवा देना , उसे वस्त्र दे देना या आश्रय दे देना ) से समाधान है .
उपाय यही है , जनचेतना बढ़ाने के लिए , मंचन , चर्चा , इस पर लिखना और पढ़ना समाज में बढ़ाया जाए। ताकि जिन बातों के लिए परिवार की और अन्य की उदासीनता से समस्या इस विकट रूप में आती है , वे - भुगतने वाले के तन मन और जीवन के दुःखद पक्ष को जानें-समझें । मन और कर्म में दया रख न तो किसी की ऐसी अवस्था के लिए कारण बनें। और जहाँ ऐसी 'निर्दया' है उसका स्थाई हल (एक दो दिन का नहीं ) करने के लिए आगे आयें .
दुर्भाग्य , धर्म तो दया की सीख देते थे , लेकिन धर्म अंधविश्वासों और पाखंड में घिर जाने से नई पीढ़ी उससे विमुख हो रही है। और देश की फ़िल्में , मीडिया और समाचार माध्यम जिनकी घर घर पैठ है , उनकी प्राथमिकतायें कुछ और हैं। समाज और देश सुधार की उनकी भाव भंगिमा सिर्फ छलावा है ( दिखाने के दाँत हैं , मगरमच्छी आँसू हैं).
--राजेश जैन   
03-12-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

No comments:

Post a Comment