Gender Equality -once again
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देश के समुद्री तट पर भीषण तूफान आने वाला है। आज शांत हमारा शहर आने वाले चार -पाँच दिन में इससे बुरी तरह प्रभावित होगा इस तरह का समाचार हमें कुछ उपाय को बाध्य करता।
वैसे ही
आज परिवार में पले -बड़े हुए बच्चे अपनी उम्र के प्रभाव में अति स्वछंदता को बढ़ रहे हैं। जिनमें कुछ परिवार संस्था के महत्व से ही सरोकार नहीं मानते। और कुछ परिवार के मह्त्व को तो इंकार नहीं करते लेकिन ऐसे रास्ते और आचरण पर बढ़ रहे हैं , जिनमें उनका पारिवारिक जीवन संकट में दिखता है. अभी की अति स्वछंदता की परछाई और बिगड़ी आदतों के कारण परिवार में अपेक्षित विश्वास और प्रेम की कमी आगामी समय में उनके परिवार को अस्थिर करेगी .
इसके परिणाम स्वरूप बच्चे माँ -और पिता के सयुंक्त देखरेख में पलने से वंचित होंगे. जब परिवार में लालन -पालन के बाद आज के युवाओं का यह हाल है। तब वे युवा जिनका लालन -पालन टूटे परिवारों में होगा , वे कितने जिम्मेदार हो सकेंगे ?
यह समाज के सागर तट पर भीषण तूफान का आगमन है . जिसके प्रकोप में निश्चित ही समाज का वह हिस्सा भी अगली दो -तीन पीढ़ी में आने वाला है। जिसमें हमारा सुखी परिवार आज निवास करता है।
परिवार पर आशंकित इस विपत्ति से वे भी सुरक्षित नहीं हैं , जिनकी संतान, पुत्र हैं। अगर माना जाए कि किसी भी परिवार के टूटने से प्रभावित होने वाला पक्ष नारी होता है तो यह गलत है। अगर बहु भी या पत्नी भी ठीक ना मिली हो तो हमारा पुत्र , बुरे जीवन के कगार पर होता है। अतः सभी परिवार का आज दायित्व है कि वे अपने पाल्य को चाहे पुत्री या पुत्र।उचित जिम्मेदारी की प्रेरणा दें। यही आगामी समाज पर आसन्न संकट से बचाने में सहायक होगा।
आज के युवा जिनके आगे परिवार और बच्चे होने हैं वे भी भविष्य की इबारत को पढ़ने की कोशिश करें। हमारा किया सिर्फ हमें प्रभावित करता हो तो निश्चित ही हम कुछ भी करने को स्वतन्त्र होते हैं। लेकिन जो किया हमारे समाज को बुरे रूप में प्रभावित करता है उसे करने से पहले हमें गंभीरता से समझने का सामाजिक दायित्व अपने पर लेना होगा। यह दायित्व पुरुष और नारी पर समान ही है। कम से कम यहाँ नारी को अपने समान मानने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
पाश्चात्य समाज बिखरा समाज है। वहाँ सुविधा और व्यवस्था जरूर हम से परिष्कृत है। उससे कुछ लेना और सीखना है तो यही 2 चीज उचित है। किन्तु भोग विलासिता और अति स्वछंदता से बेहतर जीवन सुख भारतीय पारिवारिक अनुशासन , परस्पर- प्रेम ,विश्वास और त्याग में ही है।
--राजेश जैन
15-12-2014
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देश के समुद्री तट पर भीषण तूफान आने वाला है। आज शांत हमारा शहर आने वाले चार -पाँच दिन में इससे बुरी तरह प्रभावित होगा इस तरह का समाचार हमें कुछ उपाय को बाध्य करता।
वैसे ही
आज परिवार में पले -बड़े हुए बच्चे अपनी उम्र के प्रभाव में अति स्वछंदता को बढ़ रहे हैं। जिनमें कुछ परिवार संस्था के महत्व से ही सरोकार नहीं मानते। और कुछ परिवार के मह्त्व को तो इंकार नहीं करते लेकिन ऐसे रास्ते और आचरण पर बढ़ रहे हैं , जिनमें उनका पारिवारिक जीवन संकट में दिखता है. अभी की अति स्वछंदता की परछाई और बिगड़ी आदतों के कारण परिवार में अपेक्षित विश्वास और प्रेम की कमी आगामी समय में उनके परिवार को अस्थिर करेगी .
इसके परिणाम स्वरूप बच्चे माँ -और पिता के सयुंक्त देखरेख में पलने से वंचित होंगे. जब परिवार में लालन -पालन के बाद आज के युवाओं का यह हाल है। तब वे युवा जिनका लालन -पालन टूटे परिवारों में होगा , वे कितने जिम्मेदार हो सकेंगे ?
यह समाज के सागर तट पर भीषण तूफान का आगमन है . जिसके प्रकोप में निश्चित ही समाज का वह हिस्सा भी अगली दो -तीन पीढ़ी में आने वाला है। जिसमें हमारा सुखी परिवार आज निवास करता है।
परिवार पर आशंकित इस विपत्ति से वे भी सुरक्षित नहीं हैं , जिनकी संतान, पुत्र हैं। अगर माना जाए कि किसी भी परिवार के टूटने से प्रभावित होने वाला पक्ष नारी होता है तो यह गलत है। अगर बहु भी या पत्नी भी ठीक ना मिली हो तो हमारा पुत्र , बुरे जीवन के कगार पर होता है। अतः सभी परिवार का आज दायित्व है कि वे अपने पाल्य को चाहे पुत्री या पुत्र।उचित जिम्मेदारी की प्रेरणा दें। यही आगामी समाज पर आसन्न संकट से बचाने में सहायक होगा।
आज के युवा जिनके आगे परिवार और बच्चे होने हैं वे भी भविष्य की इबारत को पढ़ने की कोशिश करें। हमारा किया सिर्फ हमें प्रभावित करता हो तो निश्चित ही हम कुछ भी करने को स्वतन्त्र होते हैं। लेकिन जो किया हमारे समाज को बुरे रूप में प्रभावित करता है उसे करने से पहले हमें गंभीरता से समझने का सामाजिक दायित्व अपने पर लेना होगा। यह दायित्व पुरुष और नारी पर समान ही है। कम से कम यहाँ नारी को अपने समान मानने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
पाश्चात्य समाज बिखरा समाज है। वहाँ सुविधा और व्यवस्था जरूर हम से परिष्कृत है। उससे कुछ लेना और सीखना है तो यही 2 चीज उचित है। किन्तु भोग विलासिता और अति स्वछंदता से बेहतर जीवन सुख भारतीय पारिवारिक अनुशासन , परस्पर- प्रेम ,विश्वास और त्याग में ही है।
--राजेश जैन
15-12-2014
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