Monday, December 1, 2014

हम साबित करें - मूर्ख नहीं हैं

हम साबित करें - मूर्ख नहीं हैं
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फेसबुक पर ऐसी एक पोस्ट देखी


"पत्नी ओर पति सो रहे थे?
अचानक ?
पत्नी सपना देख के चिल्लाई ?
उठो भागो मेरा पति आ गया है....
पति भी उठा और खिङकी से कूद गया"


लेखक को स्मरण है , किसी बुरी बात की चर्चा जब बचपन में करता तो माँ कहतीं ऐसी बात बार-बार कहने की नहीं होती। कारण पूछता तो टाल कर कहतीं , ऐसी ख़राब बात की चर्चा करने से अच्छी बात कहने ,सुनने और समझने के लिये समय कम हो जाता है। उपरोक्त पोस्ट पढ़कर , बचपन की माँ द्वारा कही यह बात याद आ गई। सरकार द्वारा विभिन्न टैक्स लिए जाते हैं , आयकर भी उनमें से एक है , पहले शायद कुछ ही व्यक्ति होंगे जो टैक्स भरने में बेईमान रहे होंगे। अब कुछ ही व्यक्ति होंगे जो टैक्स भरने में ईमानदार रह गए हैं। जब तक टैक्स भरने में बेईमानी कुछ तक सीमित थी और उस बेईमानी का उल्लेख कम था , दूसरे टैक्स चुकाने में सच्चे थे। टैक्स में बेईमानी की जाती है ,ऐसी चर्चा अधिक होने लगी तो सच्चे व्यक्ति भी यह करने लगे ,क्यों ? उन्हें ज्ञात हो गया ऐसा भी किया जा सकता है और धन बचाया जा सकता है। 


आज , कई तरह की बुराई ही समाचारों और मीडिया पर छाई रहती हैं। इसके बुरे प्रभाव में सर्वप्रथम यह है कि राष्ट्र और समाज में विध्यमान अच्छाइयों को इन पर स्थान नहीं मिलता है। जिससे अच्छाई ना तो प्रचारित हो रही है ना ही प्रसारित हो रही है। दूसरे जो उन बुराइयों में लिप्त नहीं है , उसकी जानकारी में बुराई आ रही है। बुराई से बचाव से के लिए जानकारी रखना अच्छा है , लेकिन हर समय और अति चर्चा हमें बुराई में घसीट लेती है। जीवन में अनेकों परिस्थिति और मन चंचलता के पल आते हैं , जो व्यक्ति को कमजोर कर उन्हें बुराई के रास्ते की जानकारी होने पर उसमें धकेल सकते हैं। जैसे शराब की दुकान होने की जानकारी किसी व्यक्ति को नहीं है तो वह ढूंढेगा नहीं। किन्तु कहीं है यह मालूम है तो कमजोर क्षण में उसके , उसे ढूंढ कर उसमें पहुँचने की संभावना होती है।



फेसबुक की उक्त पोस्ट के बारे में लेखकीय तर्क यह है कि , कम से कम भारत में ऐसे पति -पत्नी कम हैं जो परस्पर निष्ठ नहीं हैं। लेकिन ऐसी पोस्ट अधिकता में पढ़ी - लिखी जा रही हैं जो ऐसा भ्रम उत्पन्न करती हैं कि पति -पत्नी ऐसे ही होते और रहते हैं।ऐसे में आ रही नई पीढ़ी (युवा) इस गंदगी पूर्ण प्रचार आधारित मानसिकता के हो गए तो क्या होगा भारतीय सामाजिक परिदृश्य ?


वास्तव में जोक्स और कॉमेडी पावर स्टेयरिंग जैसा काम करते हैं , इनके प्रयोग से थोड़े से प्रयास में समाज की दिशा बहुत मोड़ दी जा रही है। मीडिया और समाचारों में जोक्स और कॉमेडी के माध्यम से ऐसी अपसंस्कृति और गंदगी परोसी जा रही है। जिसका सेवन युवाओं का दिमाग और चरित्र बिगाड़ रहा है। आपत्ति की जाए तो कहेंगे- यार , ये तो कॉमेडी है , हँसने के लिए इस पर गंभीर होने की जरुरत नहीं।


एक और बात लेख अप्रासंगिक नहीं है। कॉमेडी के नाम पर घर घर पहुँचे टेलीविजन के माध्यम से रही प्रस्तुतियों में इन हलकी और फूहड़ कॉमेडी पर प्रस्तुतकर्ता तथाकथित सेलिब्रिटी ऐसे पेट पकड़ के हँसते हैं जैसे हास्य की उत्कृष्टता उन्होंने पेश कर दी हो। उनका हँसना तो शायद उनके लिए ठीक भी हो उससे उन्हें धन और (भ्रम) प्रसिध्दि मिलती है। लेकिन उन प्रस्तुतियों पर हमारा हँसना क्या उचित है जबकि हम इसके लिए 1. धन व्यय 2. समय ख़राब और 3. अपनी संस्कृति विस्मृत करते हैं।
हमारा इन पर हँसना हमें क्या सिध्द करता है ?


--राजेश जैन
01-12-2014

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