Wednesday, October 22, 2014

हमारी आधुनिक दीपावली


हमारी आधुनिक दीपावली
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दीपावली में प्रज्वलित दीप श्रृंखला मनभावन होती हैं। पटाखों की रंग-बिरंगी प्रकाश की छटा लुभावनी होती है।
 लेकिन सभी आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते हैं कि दीप श्रृंखला और रंग-बिरंगी पटाखों की छटा अपने द्वार -आँगन पर सजा सकें. उनकी लाचारी की अनुभूति तब और बढ़ती है , जब किसी को इन पर (डेकोरेशन पर) अति धन -व्यय करते देखते हैं।  हमारे निर्धन देशवासियों की इस वेदनाकारी अनुभूति को हम कम कर सकते हैं। अपने दीपावली मनाने के ढंग में न्यायिकता लाकर।

आधुनिक समय की हमारी दीपावली ऐसी मननी चाहिए -
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घर द्वार में साफ़ सफाई और पुताई की जानी चाहिए। दीप कम से कम (हो सके तो एक प्रति द्वार) प्रज्वलित किये गये हों। हर द्वार का एक दीप भी ग्राम -नगर में सयुंक्त रूप से दीप श्रृंखला बना देता है। अन्धकार कम कर देता है। कम आवाज वाले और कम मात्रा में पटाखें फोड़े जाने चाहिए। ना फोड़े जायें तो और भी प्रशंसनीय होगा। घर घर में ही परंपरागत पकवान बनाये जाने चाहिए। इस तरह दीपावली मन जायेगी।

धन लाभ (लक्ष्मी वृध्दि )
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दीप में जल जाने वाला तेल-घी बचेगा जिसे अन्य उपयोगी कार्य में लगाया जा सकेगा । जीव -हिंसा कम होगी . बारूद बरबादी कम होगी। मिलावटी मिठाई के स्वास्थ्यगत बुरे प्रभाव से बचेंगे।  (इन व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों से क्षमा सहित ) . और सबसे बड़ा पुण्य दीन-हीनों की मानसिक पीड़ा बढ़ने से बचाने का मिलेगा।

पर्व उपयोगिता
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यही भाईचारा है , जो समाज को खुशहाल बनाता है। दीपावली पर्व से सामाजिक खुशहाली बढ़नी चाहिए। यही उत्सवों की उपयोगिता होती है।

--राजेश जैन
21-10-2014
 

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