गर्ल्स -बॉयज समान क्षमतावान हैं
----------------------------------
अपने भाई -बहन , माँ -पिता , पति/पत्नी , पुत्र -पुत्री या अन्य परिजन और घनिष्ठ मित्रों सभी में जो बात हम देखना चाहते हैं वह होती है .... "उनका अच्छा चरित्र" . अपवाद ही कोई होगा जो इस बात से असहमति जताएगा। जब हमारे सभी प्रियजनों से हमारी ऐसी अपेक्षा होती है तब क्यों हम स्वयं चरित्रवान रहने में यथोचित गंभीरता नहीं रखते? जबकि हम स्वयं भी किसी के भाई /बहन , माँ /पिता , पति/पत्नी या पुत्र/-पुत्री होते हैं।
जब हम अपनी संस्कृति , चरित्र और अपेक्षित मर्यादा खोते हैं तो अपने परिजनों और घनिष्ठ मित्रों को निराश और दुःखी करते हैं. जब हम अमर्यादित आचरण करते हैं तब अपने चपेट में ले दूसरों के चरित्र और संस्कृति से पतन के लिये जिम्मेदार हो जाते हैं। उनके चारित्रिक पतन से उनके परिजन दुःखी और निराशा में जीने को बाध्य होते हैं। अनायास ही हम अनेकों को दुःखी करने के दोषी होते हैं। एक दूसरे से इस तरह प्रभावित हो यह निराशा और दुःख हमारे समाज में फैलता है।
समाज में दुःख और निराशा का वातावरण हमें दुःखी करता है। इस सामाजिक स्थिति के लिए हम कई तरह दोषारोपण अन्य पर करते हैं। और परस्पर आलोचना का सिलसिला चला कर आपसी वैमनस्य उत्पन्न करते हैं। हम इस तरह के अंधत्व का परिचय देते हैं जिसमें हम स्वयं भी सामाजिक बुराइयों का कारण हैं , अपने में निहार नहीं पाते हैं।
हम अन्याय भी करते हैं . जिस अपराध के स्वयं दोषी होते हैं , उसका दंड दूसरे पर थोपते हैं। कहीं हम पुरुष ग्रुप बन सारी समस्या के लिये नारी व्यवहार , आचरण या उनके परिधानों को जिम्मेदार बताते हैं। कहीं हम धर्मविशेष का समूह बन अन्य धर्मावलम्बियों पर प्रहार करते हैं। कहीं भाषा और क्षेत्र की सीमा रेखा खींच अन्य को आधिपत्य में लेने की चेष्टा करते हैं।
आवश्यक होता है आत्मनियंत्रण, और इससे अपनी अपेक्षाओं , आचरण और कर्म पर मर्यादित सीमा रेखा खींचना। दूसरे क्या कर रहे हैं , वैसा ही करना ना तो किसी के लिए आवश्यक है ना ही आधुनिकता है। सच्ची आधुनिकता वह होती है जो पूर्व समय की बुराइयों से वर्तमान को मुक्त कराती है। हम सद्चरित्रता ,अच्छे आचरण और कर्म में विश्वास रखते हुये इसे अपने में लायें और इसका प्रवर्तन करें यही कई सामाजिक बुराई और समस्या का समाधान हो सकता है। यही आधुनिकता है। प्रचारित आधुनिकता जिसमें हम ज्यादा स्वच्छंद हो व्यवहार और दुष्कर्म करते हैं , कतई आधुनिकता नहीं है एक मनोरोग है। पाश्चात्य मनोरोगियों से हमारे समाज और देश में फैला एक इन्फेक्शन है।
हम दोषारोपण और पर-आलोचना पर ना जाकर स्वयं सच्चे और अच्छे बने। हमने अब तक क्या ख़राब कर लिया है इस की चिंता भी छोड़ें . अभी से भी हम अच्छा करना आरम्भ करें तो स्वहितकारी और सर्वहितकारी हो सकता है। अच्छा करने की क्षमता और वैचारिकता के लिए गर्ल्स -बॉयज सभी समान हैं ,समान प्रतिभावान भी हैं। अपनी प्रतिभा (टैलेंट) को समाज हित मानवता हित में लगा कर स्वयं अपने पर, अपने जीवन पर गौरव बोध अनुभूत कर सकते हैं । लेखक की यही शुभकामना है .यही लेख का उद्देश्य है। "आओ हम आज से आधुनिक बनें। "
--राजेश जैन
11-11-2014
----------------------------------
अपने भाई -बहन , माँ -पिता , पति/पत्नी , पुत्र -पुत्री या अन्य परिजन और घनिष्ठ मित्रों सभी में जो बात हम देखना चाहते हैं वह होती है .... "उनका अच्छा चरित्र" . अपवाद ही कोई होगा जो इस बात से असहमति जताएगा। जब हमारे सभी प्रियजनों से हमारी ऐसी अपेक्षा होती है तब क्यों हम स्वयं चरित्रवान रहने में यथोचित गंभीरता नहीं रखते? जबकि हम स्वयं भी किसी के भाई /बहन , माँ /पिता , पति/पत्नी या पुत्र/-पुत्री होते हैं।
जब हम अपनी संस्कृति , चरित्र और अपेक्षित मर्यादा खोते हैं तो अपने परिजनों और घनिष्ठ मित्रों को निराश और दुःखी करते हैं. जब हम अमर्यादित आचरण करते हैं तब अपने चपेट में ले दूसरों के चरित्र और संस्कृति से पतन के लिये जिम्मेदार हो जाते हैं। उनके चारित्रिक पतन से उनके परिजन दुःखी और निराशा में जीने को बाध्य होते हैं। अनायास ही हम अनेकों को दुःखी करने के दोषी होते हैं। एक दूसरे से इस तरह प्रभावित हो यह निराशा और दुःख हमारे समाज में फैलता है।
समाज में दुःख और निराशा का वातावरण हमें दुःखी करता है। इस सामाजिक स्थिति के लिए हम कई तरह दोषारोपण अन्य पर करते हैं। और परस्पर आलोचना का सिलसिला चला कर आपसी वैमनस्य उत्पन्न करते हैं। हम इस तरह के अंधत्व का परिचय देते हैं जिसमें हम स्वयं भी सामाजिक बुराइयों का कारण हैं , अपने में निहार नहीं पाते हैं।
हम अन्याय भी करते हैं . जिस अपराध के स्वयं दोषी होते हैं , उसका दंड दूसरे पर थोपते हैं। कहीं हम पुरुष ग्रुप बन सारी समस्या के लिये नारी व्यवहार , आचरण या उनके परिधानों को जिम्मेदार बताते हैं। कहीं हम धर्मविशेष का समूह बन अन्य धर्मावलम्बियों पर प्रहार करते हैं। कहीं भाषा और क्षेत्र की सीमा रेखा खींच अन्य को आधिपत्य में लेने की चेष्टा करते हैं।
आवश्यक होता है आत्मनियंत्रण, और इससे अपनी अपेक्षाओं , आचरण और कर्म पर मर्यादित सीमा रेखा खींचना। दूसरे क्या कर रहे हैं , वैसा ही करना ना तो किसी के लिए आवश्यक है ना ही आधुनिकता है। सच्ची आधुनिकता वह होती है जो पूर्व समय की बुराइयों से वर्तमान को मुक्त कराती है। हम सद्चरित्रता ,अच्छे आचरण और कर्म में विश्वास रखते हुये इसे अपने में लायें और इसका प्रवर्तन करें यही कई सामाजिक बुराई और समस्या का समाधान हो सकता है। यही आधुनिकता है। प्रचारित आधुनिकता जिसमें हम ज्यादा स्वच्छंद हो व्यवहार और दुष्कर्म करते हैं , कतई आधुनिकता नहीं है एक मनोरोग है। पाश्चात्य मनोरोगियों से हमारे समाज और देश में फैला एक इन्फेक्शन है।
हम दोषारोपण और पर-आलोचना पर ना जाकर स्वयं सच्चे और अच्छे बने। हमने अब तक क्या ख़राब कर लिया है इस की चिंता भी छोड़ें . अभी से भी हम अच्छा करना आरम्भ करें तो स्वहितकारी और सर्वहितकारी हो सकता है। अच्छा करने की क्षमता और वैचारिकता के लिए गर्ल्स -बॉयज सभी समान हैं ,समान प्रतिभावान भी हैं। अपनी प्रतिभा (टैलेंट) को समाज हित मानवता हित में लगा कर स्वयं अपने पर, अपने जीवन पर गौरव बोध अनुभूत कर सकते हैं । लेखक की यही शुभकामना है .यही लेख का उद्देश्य है। "आओ हम आज से आधुनिक बनें। "
--राजेश जैन
11-11-2014
No comments:
Post a Comment