Tuesday, December 9, 2014

माँ -और नारी लाज

माँ -और नारी लाज
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एक राज्य में बढ़ती घटनाओं के बीच , एक युवती पर बलात्कार का अपराधी पकड़ा गया।  राजा ने उसका दंड अपराधी के मुख से सुनकर ही दंड देने का निर्णय किया।  और अपराधी से तीन दिन में अपने दंड हेतु विचार कर बताने को कहा।
माँ को अपने पुत्र की करतूत सुन गहन क्षोभ हुआ। उसे अपने संस्कारों की कमी पर क्रोध आया।  वह राजा से मिली और उनसे कुछ प्रार्थना की। राजा ने विचारोपरान्त उस माँ से सहमति जताई।
दूसरे दिन एक मैदान में एक वृक्ष से उस अपराधी को बाँधा गया फिर अकेला छोड़ दिया गया। कुछ देर बाद मैदान में उसकी माँ आई पुत्र से कुछ बात कर ही रही थी तब एक दुष्ट किस्म का व्यक्ति आया. पुत्र को बँधा देख और अधेड़ स्त्री को अकेला देख वह उससे दुराचार का प्रयास करने लगा , वह माँ गिड़गिड़ाते और रोते इधर उधर भागती रही। उस दुष्ट को नारी लाज की दुहाई दे अनुनय करती रही। दुष्ट ने कोई दया नहीं दिखाई। उसे एक वृक्ष के पीछे खींच ले गया।  दृश्य देख अपराधी पुत्र की आँखे झुक गई , क्रोध और विवशता से वह कांपने लगा ।
कुछ देर में राजा के सैनिक आये जिन्होंने , दुष्ट को काबू किया और माँ को वापिस घर भेजा।
तीसरे दिन राजा ने दरबार लगा कर उसके किये अपराध की सजा पूछी , माँ पर हुए शोषण के साक्षी उस पुत्र ने , अपने लिए मौत की सजा माँगी।
पड़ोसियों ने माँ से पुत्र के समक्ष किये स्टेज में स्वयं के स्थान पर अपनी बेटी को क्यों नहीं भेजा पूछा तो -उस वीर नारी ने कहा , बहन पर यह दुराचार देख , पुरुष समाज अपनी बहन -बेटी का हत्यारा बनता।
लेकिन माँ - पुत्र के पहले होती है इसलिए उसने स्वयं उस स्टेज को अंजाम दिया।
--राजेश जैन
09-12-2014

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