Thursday, October 9, 2014

परिवार


परिवार
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टैक्सी से उतरते हुये रीतेश , भाड़ा भुगतान करते हुए सौ रुपये टिप देते हुए ड्राइवर से कहता है , भाई न्याय और परिश्रम से कमाता हूँ। ये टिप के पैसे अपने परिवार पर होने वाले खर्चे में कटौती कर तुम्हें दे रहा हूँ , इसे अपने परिवार की ख़ुशी पर खर्च करना। महेंद्र (ड्राइवर) कुछ विचित्र सी दृष्टि से रीतेश को निहार कर रुपये ले लेता है।
शाम को फल की दुकान पर वह कुछ फल खरीद कर वापिस टैक्सी की तरफ बढ़ता है।  तब उसका साथी राम पूछता है , क्या पैक करवाया है , आज क्या घर पर पियेगा -खायेगा ? महेंद्र - मुस्काते और बचते हुए टैक्सी में आ बैठता है।
घर पर पहुँच द्वार खटखटाने पर पत्नी निशा  पति को जल्दी लौटा देख आश्चर्य मिश्रित भय से पूछती है -क्या हुआ जी , तबियत ठीक नहीं है क्या ? प्यार से निहारते जब महेंद्र कहता है , नहीं आज ज्यादा ठीक है।  पति के स्वर में नशे की हालत का अभाव उसे हर्षित करता है।
निशा के प्रसन्न मुखड़े को देख महेंद्र सोचता है बिना पैसे से भी परिवार खुश रहता है क्या ? अभी तो दो घंटा का समय अधिक ही देता देखा है , निशा ने।
अंदर सात साल की आरु , पापा को देख उससे गले आ लगती है। महेंद्र ,उसे लिफाफे में से निकाल फल देता है।  कहता है ले इसे खाकर देख कैसा है ?
आरु - आश्चर्य से महेंद्र को देखती है , मम्मी की तरफ देख शिकायती स्वर में कहती है - मम्मी , पापा कच्चा आलू खाने कह रहे हैं ?
निशा को बात समझने में समय लगता है , आरु से कहने के पहले , महेंद्र की ओर नयनों में प्यार भर देखती है।  महेंद्र को शादी के बाद इन आँखों में ऐसा भाव पहली बार अनुभव होता है। वह मन से रीतेश को दुआ देता है , उसके कान में स्वर सुनाई देता है , आरु -खा कर देख मीठा है ,आलू नहीं है ……

--राजेश जैन
10-11-2014

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