Friday, December 12, 2014

अनुभूति में पिता का जीता रहना

अनुभूति में पिता का जीता रहना
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सुनो बेटे ,पिता तुम्हारा मै क्या कहता हूँ
भलाई जो करते तुम उसमें मै रहता हूँ
तुम जन्में लालन को तुम्हारे मै जीता था
सुयोग्य तुम्हारे भले भाव से अब जी लेता हूँ

भलाई जो त्यागी तुमने जीते जी मर जाऊँगा
जारी रखी भलाई तुमने मरकर भी जी जाऊँगा

तुम जो करते अपने लिए उसमें तुम रहते हो
सद्कर्म जब करते भीतर तुम्हारे हम रहते हैं

बेटे हमें दीर्घायु देखना तुम चाहते हो
नहीं सामर्थ्य तुम्हारा ये मै समझता हूँ
आयु होगी सब जैसे मै भी चला जाऊँगा
तब तुम्हारे भले भाव में बस रह जाऊँगा 

बेटे शरीर का चिरकाल रहना नहीं संभव है
तुम्हारे में मेरी आत्मा की अनुभूति संभव है
पिता को सम्मानीय तुम कहते मै भी कहता हूँ
अपने पिता का नाम बढ़ाने भले कार्य करता हूँ

पिता और माँ का रिश्ता गजब बताया है
बच्चों के लिए करनी ने उन्हें पूज्य बनाया है

बेटे मालूम क्यों? समाज में बुराई यों बढ़ रही है
माँ -पिता के त्याग भुला संतान अति कर रही है
न जाना उन रास्तों पर मदहोशी में जो बन रहे हैं
दृढ़ता से बने रहना सदमार्ग पर जिसमें बढ़ रहे हो

सुनो बेटे पिता तुम्हारा चुनौतियों से न घबराया है
उत्साह भलाई का कायम रखना कहने ये आया है

आती नहीं थी कविता तुम्हारे लाड़ को कर लेता है
संभव है सब प्रमाणित ऐसे तुम्हारा पिता करता है
कहते हैं बुराई थामना एक के सामर्थ्य में असंभव है
स्मरण में मुझे रख कर तुम्हारे लिए करना संभव है

--राजेश जैन
13-12-2014

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