Thursday, December 18, 2014

क्या घिनौने जुलूस में जाना जरुरी है

क्या घिनौने जुलूस में जाना जरुरी है
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Gender Equality के नाम पर , पश्चिम में शायद वहां की नारी नहीं कोई अति धूर्त पुरुष रहा होगा जिसने गलत प्रतिक्रिया के लिए नारी को उकसाया। जिससे कुछ वर्षों में ही ,नारी की गलत और अति प्रतिक्रिया में वहाँ "नारी देह का वह घिनौना जुलूस" निकला हुआ है। जो फिल्मों , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , नेट ,मैग्जीन्स और लगभग हर जगह गाजर घास सा फ़ैल और पनप रहा है। नारी किस तरह उस षणयंत्र की शिकार हुई है इसे भारत में सयंत ...और शांत होकर समझना है. लेखक के पास नारी के कोमल मन मस्तिष्क में व्याप्त कोमल भावनाओं का अनुभव है। लेखक ने घर में माँ ,बहन ,पत्नी और बेटी सभी में इसे अनुभव किया है। अतः नारी पर कोई लेखनी चलाने के पहले बहुत नरम शब्द ही प्रयुक्त करता है। ताकि उसके कोमल मन पर कोई चोट ना लग जाये। किन्तु उक्त कड़े रूप में उल्लेख , भले ही वह पाश्चात्य नारी (परायी) की दुर्दशा है ,नहीं करना चाहता था। किन्तु जब ऐसा लगता है उसी धूर्त पुरुष मानसिकता के चंगुल में भारतीय नारी भी फँस रही है तब ,नारी चेतना देने उसका सम्मान सुनिश्चित करने के लिए इस रूप में प्रस्तुति देना पढ़ रही है।
वास्तव में उग्र ,अतिवादी प्रतिक्रियायें हमारे समाज में नारी की ओर से देखने मिल रही हैं। जिसकी एक बानगी , एक नारी प्रस्तुति में यह वाक्य है -
"फिर क्यों न लांघें हम घर की चौखट? क्यों न निकलें हम रात में? क्यों न फेंक दें उतारकर तुम्हारे झूठे आदर्शों और इज्ज़त का बोझ हम अपने सर से?"
किसी विकृत मनोवृत्ति से बचाव में उसकी प्रतिक्रिया में ,हम अपनी मनोवृत्ति में विकृत्ति लायें यह अनुचित है
नारी -पुरुष समानता इस तरह सुनिश्चित नहीं होती। नारी , पुरुष से श्रेष्ठ है उसे कहाँ पुरुष से समानता करने की आवश्यकता है। हम सभी पुरुष धूर्त नहीं हैं। नारी श्रेष्ठता को समझ रहे हैं , उसे सम्मान भी दे रहे हैं, कुछ उदाहरण देखें …
-वर्किंग नारी के पति , किचन और गृहस्थी में उसका हाथ बराबरी से बँटा रहे हैं.
-समाज में पहले जिन भी वजह से नहीं था , लेकिन अब उसे शिक्षा के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। नारी भी शिक्षित हो ,जॉब कर पुरुष का कंधा मिला घर -परिवार सुखदता के लिए पूर्ण सहयोग कर रही है।
कई परिवार में संतान सिर्फ पुत्री या 2 पुत्रियाँ हैं। उनके पिता पुरुष ही हैं , नारी नहीं। कहाँ , वे पिता पुरुष , बेटे के होने को महत्त्व दे रहे हैं।
-पुरुष अपने को नारी बिना अधूरा मान रहा है।
ना जायें कुछ धूर्त और अज्ञानी पुरुष की हरकत में असंतुलित और विकृति युक्त प्रतिक्रिया में , ना शामिल हों उस घिनौने जुलूस में। रोक दें उस जुलूस को और विकराल होने से। बनें नारी आदर्श की प्रति मूर्ती , तब नारी नहीं , पुरुष नारी समान श्रेष्ठता को पाने को लालायित होगा।
--राजेश जैन
19-12-2014

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