Friday, December 26, 2014

भारत रत्न

भारत रत्न
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जिसने जीवन में कभी एमपी , मंत्री या प्रधानमंत्री होने के लिए काम नहीं किया। एमपी , मंत्री या प्रधानमंत्री हुए तब भी वही काम किया जो वे यह न होकर करते थे , अर्थात "देश और समाज भलाई को सुनिश्चित करती हमारी व्यवस्था " के लिए समर्पित हो काम। उन्होंने कभी "भारत रत्न " भी न चाहा। स्वयं प्रधानमंत्री थे तब इस प्रश्न पर भी आदर्शपूर्ण परम्परा के लिए कहा "मै स्वयं के लिए भारतरत्न को कैसे स्वीकृति दे सकता हूँ ?" . पूरे जीवन में त्याग और आदर्श के अनेकों उदाहरण देने वाले , शत्रु राष्ट्र को भी , और विरोधी राजनेता को भी भले लगने वाले ,भारत रत्न से अब विभूषित किये जाने वाले हमारे पूर्व प्रधानमंत्री , ज्यादा प्रसन्न शायद तब होते जब उन्हें इस सम्मान के लिए , पूर्व की अन्य पार्टी की सरकार चयनित करती। हमारे देश में ऐसी आदर्श परम्परा रही थी। लेकिन अब उसका निर्वाह नहीं होता । पूर्व सरकार ने उन्हें भारत रत्न नहीं दिया। पूर्व सरकार ने एक खिलाड़ी को "भारतरत्न" दिया जिसने राष्ट्र -या समाज के भलाई के लिए विशेष कुछ नहीं किया था।
उनके तरफ से ये नहीं कहा गया कि इस सम्मान के लिए मै ,जीवन में ये कार्य करने के उपरान्त प्राप्त करने का धैर्य रखता हूँ , इसके लिए मेरे पास अभी लगभग आधा जीवन शेष है।  ना ही उन्होंने यह कहा कि "अटल जी" को नहीं दिए गए इस सम्मान को मै ग्रहण नहीं कर सकता। अगर ऐसा वे कहते और करते तब वे भारत रत्न के लिए ज्यादा पात्र होते।
भारत रत्न , अत्यंत पात्र रहे भारतीयों  को नहीं मिल सका, ये सच है , और अपात्र को भी मिला ये भी सच है।  अटल जी को दिया गया "भारत रत्न " भूल सुधार है। मालवीय जी को दिया (मरणोपरांत 68 वर्ष बाद ) "भारत रत्न " सम्मान की गरिमा बढ़ाने की एक अच्छी शुरुआत है।
अटल जी का विध्वंस पर यह वाक्य ही भारत रत्न है "पार्टी जीत गई , मै हार गया " . वास्तव में ऐसा कोई भी कार्य जो सैकड़ों निर्दोषों के मौत का कारण बनता है , 25 -30 करोड़ नागरिकों के मन में असुरक्षा उत्पन्न करता है , भारत के लिए रत्न नहीं हो सकता। अटल जी को इस हादसे ने व्यथित किया था। हर अहिंसावादी को हिंसा के ऐसे प्रसंग मानव सभ्यता पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं। फिर चाहे हिंसा प्रतिक्रिया में क्यों ना की गई हो।
'हिंसा करने वाले' या 'प्रतिक्रिया में हिंसा करने वाले' दोनों में से किसी भी पक्ष के किसी परिवार से कोई  मुखिया (या बच्चा -अभी का हादसा) प्राण गँवाता है , ऐसे परिवार जश्न नहीं , वहाँ मातम होता है।प्रतिक्रिया में अति दुरावेग में , विरोधी पक्ष की नारियों पर आतताई दुराचार करते हैं , ऐसी दुष्टता पूर्ण घटनायें सदियों के लिए परिवार के ह्रदय को पीड़ाकारी घाव देते हैं। प्रेम नहीं वैमनस्य का संचार करते हैं।  तब कोई पक्ष कभी विजेता हो नहीं सकता सभी पराजित होते हैं। अटल जी के सम्मान के अवसर पर विश्व को यही सबक लेना चाहिये।  ऐसा कोई कार्य , कभी कोई नहीं करे जिसमें सभी पराजित हो जाते हैं। अटल जी , को विलम्ब से दिए सम्मान के लिए स्वयं "भारत रत्न  परम्परा" को पछतावा अनुभव होता होगा .इसलिए भी कि आज उनको जिस स्वास्थ्य स्थिति में विभूषित किया जा रहा है उसमें वे इस सम्मान के गौरव को भी ठीक तरह से अनुभूत करने में समर्थ नहीं हैं.

--राजेश जैन
26-12-2014

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