Sunday, December 21, 2014

भाई सही रास्ता बताना , जरा भटक गया था ?

भाई सही रास्ता बताना , जरा भटक गया था ?
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भला पुरुष घर में माँ , बहन ,पत्नी और बेटी का फ्रेंड है। सब से फ्रेंडशिप निभाकर , बाहर की खराबियों से कैसे बचना है उन्हें बताता है। घर की संस्कारवान नारी बाहर विश्व और समाज की कई बुराई को नहीं जानती , नहीं देखती उन्हें भी वह बताता और सावधान कर देता है।  यध्यपि उन्होंने प्रत्यक्ष देखी नहीं है , ना ही इन बुराइयों को देखना ही उचित है। किन्तु ऐसी भी बुराई होती है ,आ गईं हैं , जानकारी हो जाने से छलिये द्वारा बिछाये छलावे में आने से बच स्वयं का और परिवार का भला कर लेती हैं। वह भला पुरुष , आसपास कुछ नारियों को छलावे में फँसा भी देखता है। छलावे से मुक्त करने के लिये आंतरिक रूप से छटपटाहट भी अनुभव करता है . सहायक नहीं हो पाता क्योंकि प्रत्यक्ष सहारा बनने का प्रयास
1. छली जाती उस नारी के मन में , इसे भले पुरुष के मंतव्य पर शंका उत्पन्न कर सकता है।
2. सहारा देने की स्थिति में उसे यह संदेह घेरता है , कहीं नारी उस पर ही कोई आरोप ना मढ़ दे , जिसमें स्वयं का बचाव और सत्यता सिध्द करना उसके लिए ही कठिन हो जाये।
नारी और पुरुष के उठ गये परस्पर विश्वास से यह स्थिति निर्मित हुई है कि कोई कहीं छला जा रहा है . वहीँ "भला" साक्षी भी हो रहा है , किन्तु छले जाने वाले को "भले" की सहायता नहीं मिल पाती है। यह स्थिति सामाजिक दृष्टि से स्वस्थकर नहीं है। तब भला पुरुष क्या करता है ? फेसबुक पर चेतना और प्रेरणा के लिए नितदिन लिखना आरम्भ करता है। यहाँ भी उसे पढ़ने वाले नहीं मिलते हैं।  वह मार्गदर्शन को उपलब्ध है , गलत राह पर जाते व्यक्ति उसके सदमार्ग के संकेत को नहीं पहचान कर अपने बुरे मार्ग को अच्छा समझने का अति विश्वास ले आगे बढ़ते जाते हैं।
भला वह पुरुष वहीं हताश खड़ा रहता है।  तमाशबीन उसकी इस हालत में सहानुभूति रखते हैं।
भला अकेला और बुराई अनेकों इस तरह चलती जाती हैं। भले को तब भी आशा है , भटका कोई तो वापस आ पूंछेगा - भाई सही रास्ता बताना , जरा भटक गया था ?
--राजेश जैन
22-12-2014

 

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