एक ही पल
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एक ही पल होता है , एक जगह कुछ दुष्ट एक नारी के शोषण पर उतारू होते हैं। कहीं ओर उसी क्षण में भला एक, किसी नारी की कठिनाई में सहारा बनता है।
पुरुष दोनों स्थान पर हैं। किसी के मन पर दुष्टता और कहीं किसी के मन में सज्जनता धारण है। दो काव्य पँक्तियों के बाद निष्कर्ष निकालेंगे -
"रूप पर पहरे न हुए कामयाब न कामयाब होंगें
विचारों में न्याय ही रूप के सच्चे पहरेदार होंगे "
वास्तव में विचार हैं जो मन को गिरफ्त में जकड़े रखते हैं। आज साधन हैं ,जो बुरे विचारों की ओर उन्मुक्त करते हैं। अच्छे विचारों का प्रसार नहीं हो पा रहे है। बुराई के प्रवर्तन में ऐसा आकर्षण लपेटा हुआ है कि सब उसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं। बुराई के प्रवर्तक स्टार कहलाते हैं ,धन वैभव और प्रसिध्दि अर्जित करते हैं। जबकि अच्छाई के प्रवर्तक ,हाशिये पर सिमटें हुए हैं।
उन्ही दुष्ट पुरुष के मन में जो नारी के शोषण में उस क्षण उतारू हैं , उस कलंकित पल के पूर्व वे क्षण आये होते जिनमें उन्हें अच्छे विचारों की प्रेरणा मिलती तो वे निश्चित है वह जबरदस्ती किसी कमजोर या अकेली पड़ गई नारी पर ना करते। वे भी वही करते जो उसी क्षण में कहीं और दूसरा एक पुरुष नारी के लिए कर रहा था , कठिनाई में पड़े किसी की सहायता।
स्पष्ट है ,नारी पर शोषण की रोकथाम के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता अच्छे विचारों का और अच्छे कर्मों का सामाजिक वातावरण में निरंतर प्रसारण या प्रवाह का होना है।
जो लोग और जो सामग्री बुराई को प्रवृत्त करती हैं , वह प्रसारण तंत्रो पर से हटें ,तो शोषण और बुराई मिटेगीं।
अन्यथा प्रवर्तन तो बुराई का होगा , अभिनय शोषण मुक्ति की उक्ति का करते हुए , प्रतिष्ठा और धन कमाते हुए सबको बेवकूफ भी बनायेंगे और स्टार कहे जाते रहेंगे।
हम जिन्हें अपना आदर्श बनाते हैं , उस पर हमारा समाज निर्भर करता है। यदि आदर्श , ढोंगी और कामभोगी बनते हैं ,तब कितने भी आयोजन करलें ,आंदोलन करलें और आव्हान करलें , साथ ही नारी कितनी भी पढ़ लिख लें , कितनी भी आर्थिक समर्थता बना ले, नारी पर शोषण -उत्पीड़न के सिलसिले थम सकेंगे -संभव नहीं होगा।
--राजेश जैन
25-12-2014
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एक ही पल होता है , एक जगह कुछ दुष्ट एक नारी के शोषण पर उतारू होते हैं। कहीं ओर उसी क्षण में भला एक, किसी नारी की कठिनाई में सहारा बनता है।
पुरुष दोनों स्थान पर हैं। किसी के मन पर दुष्टता और कहीं किसी के मन में सज्जनता धारण है। दो काव्य पँक्तियों के बाद निष्कर्ष निकालेंगे -
"रूप पर पहरे न हुए कामयाब न कामयाब होंगें
विचारों में न्याय ही रूप के सच्चे पहरेदार होंगे "
वास्तव में विचार हैं जो मन को गिरफ्त में जकड़े रखते हैं। आज साधन हैं ,जो बुरे विचारों की ओर उन्मुक्त करते हैं। अच्छे विचारों का प्रसार नहीं हो पा रहे है। बुराई के प्रवर्तन में ऐसा आकर्षण लपेटा हुआ है कि सब उसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं। बुराई के प्रवर्तक स्टार कहलाते हैं ,धन वैभव और प्रसिध्दि अर्जित करते हैं। जबकि अच्छाई के प्रवर्तक ,हाशिये पर सिमटें हुए हैं।
उन्ही दुष्ट पुरुष के मन में जो नारी के शोषण में उस क्षण उतारू हैं , उस कलंकित पल के पूर्व वे क्षण आये होते जिनमें उन्हें अच्छे विचारों की प्रेरणा मिलती तो वे निश्चित है वह जबरदस्ती किसी कमजोर या अकेली पड़ गई नारी पर ना करते। वे भी वही करते जो उसी क्षण में कहीं और दूसरा एक पुरुष नारी के लिए कर रहा था , कठिनाई में पड़े किसी की सहायता।
स्पष्ट है ,नारी पर शोषण की रोकथाम के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता अच्छे विचारों का और अच्छे कर्मों का सामाजिक वातावरण में निरंतर प्रसारण या प्रवाह का होना है।
जो लोग और जो सामग्री बुराई को प्रवृत्त करती हैं , वह प्रसारण तंत्रो पर से हटें ,तो शोषण और बुराई मिटेगीं।
अन्यथा प्रवर्तन तो बुराई का होगा , अभिनय शोषण मुक्ति की उक्ति का करते हुए , प्रतिष्ठा और धन कमाते हुए सबको बेवकूफ भी बनायेंगे और स्टार कहे जाते रहेंगे।
हम जिन्हें अपना आदर्श बनाते हैं , उस पर हमारा समाज निर्भर करता है। यदि आदर्श , ढोंगी और कामभोगी बनते हैं ,तब कितने भी आयोजन करलें ,आंदोलन करलें और आव्हान करलें , साथ ही नारी कितनी भी पढ़ लिख लें , कितनी भी आर्थिक समर्थता बना ले, नारी पर शोषण -उत्पीड़न के सिलसिले थम सकेंगे -संभव नहीं होगा।
--राजेश जैन
25-12-2014
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