Friday, December 5, 2014

नारी चेतना और सम्मान रक्षा

नारी चेतना और सम्मान रक्षा
----------------------------------
सभ्यता की ओर बढ़ती मानव यात्रा कभी ना समाप्त होने वाली यात्रा है। 
हम अभी भले सभ्य कहला रहे हैं , लेकिन बहुत कम ही सभ्य हैं.
जितने सभ्य हैं उतने उच्च सभ्य थोड़े कुछ ही हैं। अधिकाँश उससे समय पैमाने पर शताब्दियों वर्ष पिछड़े हैं।
जिन्होंने धन और प्रभाव की शक्ति किन्ही कारणों से प्राप्त करलीं हैं , वे मानव सभ्यता यात्रा में दिशा भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं.
वे अपने प्रभाव में उन कर्मों और आचरण की तरफ ही अन्य सभी को हाँकने का प्रयास कर रहे हैं।
ऐसा सदाकाल से होते आया है कोई नई बात नहीं है।
सभ्यता के मार्ग पर बढ़ते सच्चे सभ्य ,सभ्यता के पथ निरंतर निर्मित करते आगे बढ़ते जाते हैं.
और सभ्यता के भ्रम पैदा करते छद्म-सभ्य उन पथ पर  छूट पीछे रह जाते हैं , एक धुरी पथ में घूम वहीँ थम जाते हैं.
दिशा भ्रम के जिन कर्मों और आचरण का उल्लेख ऊपर किया है वह अति स्वच्छंदता का है।
जिसमें प्राणी अपनी 1.) मनमानी ही करने को प्रवृत्त रहता है और 2.) उदर पिपासा और 3.) काम पिपासा में अत्याचारी होता है।
यदि गौर किया जाए तो ऐसा जानवर का स्वभाव होता है.यदि ऐसी स्वच्छंदता की तरफ कोई बढ़ता है तो कैसे सभ्य हो सकता है ?
जबकि जानवरों सा रहकर क्रमशः स्वच्छंदता छोड़ न्याय और दया पर बढ़ता मानव सभ्य कहलाया है।
लेखक ने इस पेज ("नारी चेतना और सम्मान रक्षा ") के माध्यम से "सभ्यता की ओर बढ़ती मानव यात्रा कभी ना समाप्त होने वाली " क्यों बताया है उसका लेख अभी
अति संक्षेप में ऐसा है -
"सभ्यता की मंज़िल दूर है , जिस दिन तक स्थूल दृष्टि रख पुरुष ,नारी में उसके तन और रूप तक ही निहारेगा
(ऐसा दूसरे पक्ष से भी पढ़ा -समझा जाए ) उसकी मन की थाह पाने में विफल रहेगा।
उसमें तन की कुछ भिन्नता के अतिरिक्त मन की समस्त अपेक्षाओं में अपनी जैसी समानता नहीं दिखने लगेगी
उस दिन तक वह मानव सभ्यता के उत्कर्ष पर नहीं कहलायेगा। जिस दिन पुरुष दृष्टि इतनी समर्थ हो जायेगी वह नारी मन में भी
-सम्मान की अपेक्षा देख लेगा वह क्रमशः न्यायप्रिय होने लगेगा दिन से नारी पर पुरुष शोषण के किस्सों पर स्वतः विराम लग जाएगा (इसे भी दूसरे पक्ष से पढ़ा -समझा जाए )।
उस दिन नारी को समान अधिकार देने उसे अपने समान मानने में उसे कोई झिझक नहीं होगी।
जब तक वह दिन नहीं आएगा, मानव कमतर सभ्य ही माना जाएगा। "
नारी -पुरुष रिश्तों से अलग उदरपूर्ती , स्वास्थ्य सुविधा , मूल भूत अन्य आवश्यकतायें भी विषय हैं , जिनकी अपूर्णता और अपर्याप्तता  असभ्यता ही है।
उन पर चर्चा किसी और समय "प्रेरणा -मानवता और समाजहित " पेज से की जायेगी। 


--राजेश जैन
04-12-2014

No comments:

Post a Comment