Gender Equaliti
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कपोल कल्पित मानव इतिहास क्रम 2 पोस्ट में लिखे थे। पूर्व इतिहास में क्या था उसको कहते भूमिका बड़ी करना उपयुक्त नहीं है। संक्षिप्त में कहें तो नारी स्थिति से उत्पन्न नारी मन में बैचैनी और कुछ न्यायप्रिय पुरुषों ने सयुंक्त प्रयास जारी रखे। जिससे प्राचीन समय में उत्पन्न हुई सामाजिक बुराइयों को मिटाया भी गया।
हर शताब्दी या हर मनुष्य पीढ़ी के समक्ष नई आवश्यकतायें और सामाजिक बुराई रह गई और नई उत्पन्न हो गई बुराइयों के उन्मूलन की दिशा में कार्य करने की चुनौती रहती है। हर पीढ़ी अपना योगदान देकर मानव सभ्यता यात्रा को आगे बढाती है। हर शताब्दी को यह चिंता और तनाव होता है कि अगली शताब्दी को मानवीय समाज में बुराइयाँ बढ़ा देने का कलंक ना दे दे।
इक्कीसवीं सदी ने उन्नत प्रसारण क्षमता की विरासत बीसवीं से पाई है जिसकी नींव पर फेसबुक एक उन्नत साधन निर्मित हो गया और इस आलेख का लेखक जैसा साधारण व्यक्ति अपनी बात दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्तियों तक पहुँचाने में घर बैठे समर्थ हो गया। इक्कीसवीं सदी निश्चित ही क्रमशः कई उन्नत तकनीक विकसित करेगी जिससे चिकित्सा और जीवन सुलभता के नए साधन भी मिलेंगे. इन सुविधाओं के होते हुए भी मनुष्य समाज तभी सुखी होगा जबकि पिछली सामाजिक बुराइयों का समाप्त किया जाए और यह पीढ़ी नई सुविधाभोग अतिरेक की जीवनशैली पर अंकुश करे।
आलेख नारी चेतना विषयक पेज से है अतः अन्य विश्व समस्या और समाज बुराइयों का उल्लेख लेखक स्थगित रखेगा और नारी सम्मान के प्रश्न को ही आगे रेखांकित करेगा। प्रश्न शताब्दी के समक्ष ये हैं.
1. नारी शोषण का विस्तृत इतिहास रहा है पिछली कई शताब्दियों ने आंशिक समाधान देने के उपरांत शेष चुनौतियाँ अगली शताब्दी पर टाली है क्या यह शताब्दी इस प्रश्न का सर्वथा हल करने में समर्थ होगी ?
2. नारी अब शिक्षित है , चतुराई वह भी सीख रही है , प्रतिक्रिया में पुरुष से समानता सिध्द करने के प्रयास कर रही है। लेकिन लगता है पुरुष अभी भी ज्यादा चालाकी से पेश आने में सफल होकर नारी शोषण को नए प्रचारित "आधुनिका नारी" के आवरण के भीतर अंजाम दे रहा है। नारी को ज्यादा स्वछंद बनाकर उसका दैहिक शोषण कर रहा है। फिल्म -इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , पत्र पत्रिकाओं , विज्ञापन और व्यवसाय लगभग सारी जगह नारी को अश्लील ढंग से पेश कर अपनी पिपासा तृप्ति कर रहा है। क्या प्रतिक्रिया देती आधुनिक नारी अपनी प्रतिक्रियाओं को अपने हित में संयत रख पाएगी ? या पहले अन्य तरह से और अब अन्य तरीके से शोषित होती चली जायेगी।
लेखक समझता है , नारी शोषण को अभिशप्त नहीं है। शोषण मुक्त होने में समर्थ है। पुरुष साथ छोड़ना या उसे प्रतिव्दंदी सा देखना उपाय नहीं है। अपनी बुध्दिमानी से पुरुष को उस सीमा में रोकना आवश्यक है। नारी आधुनिक और इतनी स्वछंद रहे जितने में उसका नुक्सान नहीं है। वास्तव में धन के वे टुकड़े जो उसके अश्लील प्रदर्शन से उसके हाथ में पकड़ाये जाते हैं वह जीवन भर उसके सम्मान को सुनिश्चित करने में सहायक नहीं हो सकते हैं। नारी का जीवन कहीं ज्यादा होता है , जबकि नारी के इस उल्लेखित रूप का पराये पुरुष दृष्टि में महत्व लगभग चालीस वर्ष तक होता है। नारी को सतर्क रहना है उसे पुरुष से इस रूप में साथ देना लेना है ताकि पूरे जीवन वह एक महत्व और सम्मान से समाज में रह सके। जिस दिन उसमे चेतना आ जाये इस पेज "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " को महासागर में डुबा देना . उस दिन के पहले तक इस पेज को आसमान में फहराना चाहिए। आओ प्रबुध्द नारी-पुरुष इस फहराने को अपना हाथ और साथ दो।
इस लेखक की माँ ,बहन ,पत्नी और बेटी , नारी है. वह इन्हें ऐसे समाज में देखना चाहता है जिसमें उसके बिना भी वे सुरक्षित और सम्मानित हों .
--राजेश जैन
14-12-2014
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कपोल कल्पित मानव इतिहास क्रम 2 पोस्ट में लिखे थे। पूर्व इतिहास में क्या था उसको कहते भूमिका बड़ी करना उपयुक्त नहीं है। संक्षिप्त में कहें तो नारी स्थिति से उत्पन्न नारी मन में बैचैनी और कुछ न्यायप्रिय पुरुषों ने सयुंक्त प्रयास जारी रखे। जिससे प्राचीन समय में उत्पन्न हुई सामाजिक बुराइयों को मिटाया भी गया।
हर शताब्दी या हर मनुष्य पीढ़ी के समक्ष नई आवश्यकतायें और सामाजिक बुराई रह गई और नई उत्पन्न हो गई बुराइयों के उन्मूलन की दिशा में कार्य करने की चुनौती रहती है। हर पीढ़ी अपना योगदान देकर मानव सभ्यता यात्रा को आगे बढाती है। हर शताब्दी को यह चिंता और तनाव होता है कि अगली शताब्दी को मानवीय समाज में बुराइयाँ बढ़ा देने का कलंक ना दे दे।
इक्कीसवीं सदी ने उन्नत प्रसारण क्षमता की विरासत बीसवीं से पाई है जिसकी नींव पर फेसबुक एक उन्नत साधन निर्मित हो गया और इस आलेख का लेखक जैसा साधारण व्यक्ति अपनी बात दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्तियों तक पहुँचाने में घर बैठे समर्थ हो गया। इक्कीसवीं सदी निश्चित ही क्रमशः कई उन्नत तकनीक विकसित करेगी जिससे चिकित्सा और जीवन सुलभता के नए साधन भी मिलेंगे. इन सुविधाओं के होते हुए भी मनुष्य समाज तभी सुखी होगा जबकि पिछली सामाजिक बुराइयों का समाप्त किया जाए और यह पीढ़ी नई सुविधाभोग अतिरेक की जीवनशैली पर अंकुश करे।
आलेख नारी चेतना विषयक पेज से है अतः अन्य विश्व समस्या और समाज बुराइयों का उल्लेख लेखक स्थगित रखेगा और नारी सम्मान के प्रश्न को ही आगे रेखांकित करेगा। प्रश्न शताब्दी के समक्ष ये हैं.
1. नारी शोषण का विस्तृत इतिहास रहा है पिछली कई शताब्दियों ने आंशिक समाधान देने के उपरांत शेष चुनौतियाँ अगली शताब्दी पर टाली है क्या यह शताब्दी इस प्रश्न का सर्वथा हल करने में समर्थ होगी ?
2. नारी अब शिक्षित है , चतुराई वह भी सीख रही है , प्रतिक्रिया में पुरुष से समानता सिध्द करने के प्रयास कर रही है। लेकिन लगता है पुरुष अभी भी ज्यादा चालाकी से पेश आने में सफल होकर नारी शोषण को नए प्रचारित "आधुनिका नारी" के आवरण के भीतर अंजाम दे रहा है। नारी को ज्यादा स्वछंद बनाकर उसका दैहिक शोषण कर रहा है। फिल्म -इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , पत्र पत्रिकाओं , विज्ञापन और व्यवसाय लगभग सारी जगह नारी को अश्लील ढंग से पेश कर अपनी पिपासा तृप्ति कर रहा है। क्या प्रतिक्रिया देती आधुनिक नारी अपनी प्रतिक्रियाओं को अपने हित में संयत रख पाएगी ? या पहले अन्य तरह से और अब अन्य तरीके से शोषित होती चली जायेगी।
लेखक समझता है , नारी शोषण को अभिशप्त नहीं है। शोषण मुक्त होने में समर्थ है। पुरुष साथ छोड़ना या उसे प्रतिव्दंदी सा देखना उपाय नहीं है। अपनी बुध्दिमानी से पुरुष को उस सीमा में रोकना आवश्यक है। नारी आधुनिक और इतनी स्वछंद रहे जितने में उसका नुक्सान नहीं है। वास्तव में धन के वे टुकड़े जो उसके अश्लील प्रदर्शन से उसके हाथ में पकड़ाये जाते हैं वह जीवन भर उसके सम्मान को सुनिश्चित करने में सहायक नहीं हो सकते हैं। नारी का जीवन कहीं ज्यादा होता है , जबकि नारी के इस उल्लेखित रूप का पराये पुरुष दृष्टि में महत्व लगभग चालीस वर्ष तक होता है। नारी को सतर्क रहना है उसे पुरुष से इस रूप में साथ देना लेना है ताकि पूरे जीवन वह एक महत्व और सम्मान से समाज में रह सके। जिस दिन उसमे चेतना आ जाये इस पेज "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " को महासागर में डुबा देना . उस दिन के पहले तक इस पेज को आसमान में फहराना चाहिए। आओ प्रबुध्द नारी-पुरुष इस फहराने को अपना हाथ और साथ दो।
इस लेखक की माँ ,बहन ,पत्नी और बेटी , नारी है. वह इन्हें ऐसे समाज में देखना चाहता है जिसमें उसके बिना भी वे सुरक्षित और सम्मानित हों .
--राजेश जैन
14-12-2014
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