Sunday, December 14, 2014

जबलपुर की कुहासे भरी आज सुबह में कुछ क्षणिकायें

जबलपुर की कुहासे भरी आज सुबह में कुछ क्षणिकायें
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पेड़ से गिरती पत्ती
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दृश्य
मेरे भ्रमण में आगे देखी गिरती पेड़ से पत्ती थी
थामने की कोशिश लेकिन गिरी वह धरती पर थी

विवेक
गिरने से पेड़ की पत्ती के नहीं कुछ घट जायेगा
थामे हम संस्कृति को गिरी गर कुछ न रह जायेगा 

नीबू की सड़क पर रखी फाँकें
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दृश्य

आगे कदम के सामने कागज़ में
रखी हुई एक नीबू की फाँके थी
अपनी विपत्ति अन्य पर टालने
एक दुखियारे की वह कोशिश थी
विवेक
विपत्ति अगर टली इस हिकमत से
किसी अपने पर ही आ गिर जायेगी
पाश्चात्य संस्कृति लेती आगोश में
पीढ़ी पर विपत्ति कैसे बच पाएगी ?

कार पर ओस परत
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दृश्य

घर आया मैंने कार ओस परत से मढ़ी देखी
कपडे से जो पोंछी नई सी उभरी चमक देखी
विवेक
लापरवाही समाज-संस्कृति पर गंदगी मढ़ गई है
चमकायें साहस से पोंछकर समय की ये जरूरत है 

--राजेश जैन
15-12-2014


 

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