Monday, December 15, 2014

निर्भया के साथ गया देश को मिलता एक नोबेल

निर्भया के साथ गया देश को मिलता एक नोबेल
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आज 16 दिस. है. दो वर्ष पहले की अप्रिय घटना का स्मरण और विरोध प्रदर्शन को हमें प्रेरित करता है। जिससे हम नारी पर शोषण मुक्त समाज और व्यवस्था को सुनिश्चित कर सकें. पुरुष कुकृत्य और दुष्टता की शिकार जिन नारियों के प्राण अकाल ही चले जाते हैं। लेखक समझता है सारे में नोबेल जीतने की संभावना होती थी। इस तरह भारत में कई नोबेल संभावना का अंत प्रतिदिन हो रहा है.
नारी शोषण मुक्त व्यवस्था के लिये आज एकत्रित आन्दोलनरत नारियों में यह उत्कंठा प्रतीत होती है कि वे ठोस कुछ कर गुजरें। लेकिन ऐसे अनेक अवसर के परिणाम ये प्रदर्शित करते हैं कि ऐसे प्रदर्शन से राजनैतिक , प्रसिध्दि ,प्रतिष्ठा या एक इम्प्रैशन का लाभ ले वे संतुष्ट हो जाती हैं. और ऐसे प्रदर्शन मात्र औपचारिकतायें बन रह जाते हैं. लेखक जब यह मानता है कि हादसे के शिकार हो प्रतिदिन कई नोबेल संभावना ख़त्म होती है। तब यह भी मानता है कि सौभाग्यशाली जो हादसे के शिकार होने से बची हैं , वे भी नोबेल जीतने की क्षमता रखती हैं।  क्या वजह है ऐसी क्षमता होते हुए वे यह उपलब्धि नहीं पा लेती हैं।
ताजा उदाहरण में एक युवा नारी को नोबेल मिला है। इसलिए की उसके समक्ष चुनौती थी , जिसका उसने साहस और उचित प्रेरणा से सफलता से मुकाबला किया। हर नारी के सामने इतनी उस जैसी प्रत्यक्ष चुनौती अवश्य नहीं है। किन्तु अप्रत्यक्ष चुनौतियाँ अनेक उन्हें हैं। बस उसे अपनी मानने की देर है. जब विरोध प्रदर्शन के लिए वह खड़ी है तो यह तो साफ है कि स्वयं और दूसरी नारी को वह सुरक्षित और सम्मान से जीते देखने के लिए कुछ करना चाहती है। ऐसे में उसके समक्ष निम्न चुनौतियाँ हैं.
समाज और व्यवस्था में जो भी कमी हैं उसमें वे स्वयं अपने को सुरक्षित कैसे रखें ? क्योंकि अन्य का सहारा बनने के लिए सर्वप्रथम जरुरी , स्वयं समर्थ और सुरक्षित रहना है। नारी के स्वयं सुरक्षित रहने के लिए समाज और देश का वातावरण जो चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहा है उनमें
1. पुरुष उस मनोग्रंथि को निकाल फेंकना है जो स्वयं को कामदेव मानने का भ्रम देती है. और यह भ्रम उत्पन्न करती है कि नारी पर जबरदस्ती नारी की जरूरत है। ऐसा मानने वाला पुरुष अनेकों पर कुकृत्य कर बचता है तब किसी एक बार साहसिक प्रतिक्रिया के बाद अपराधी कहलाता है। नारी की उचित प्रतिक्रिया के अभाव में उसके भ्रम को बल मिलता है और उसमें मनोग्रंथि विकसित हो जाती है। ऐसे मनोग्रंथि वाले पुरुष अनेक हैं उनमें कई उच्च पदस्थ और समाज में प्रतिष्ठित भी हैं। नारी अपनी बुध्दिमत्ता से उनसे बचाव करे ही साथ ही उनकी मनोग्रंथि निकालने के लिए मनोवैज्ञानिक सोच से उनसे व्यवहार करे और उचित प्रेरणा दे.
2. पाश्चात्य नारी जिनमें से कई इस तरह बेशर्म हुईं हैं कि चंद सिक्कों के लालच में सबकुछ उघाड़ समाज के सम्मुख खड़ी हो गईं , और उसे प्रोफेशन की जरूरत बना जस्टिफाई कर रही है। यह सोच भारतीय नई पीढ़ी में पनप रही है कैसे अपने घर-बाहर उचित प्रेरणा से नारी अपने अपने परिवार को इस रोग से मुक्त रखे? पाश्चात्य चरित्र स्वछंदता का है. हमारा मर्यादा का है।  कैसे हम उनका चरित्र ना अपना कर , अपना मर्यादित नारी -पुरुष चरित्र विश्व को मनवायें ? अगर उनका हम मानते हैं तो हमारी हार है। जबकि हमारा हम उन्हें अपनाने को मनायें और प्रेरित करें तो यह मानवता  की जीत है।
अगर इतना ही आज की पीढ़ी की नारी कर दिखाए तो वह नोबेल जीते नहीं जीते। मानवता को जीत सकती है।
पुरुष से इस लेख में आव्हान ना करने का अर्थ यह नहीं कि उसे कुछ नहीं करना है। उसे भी सब कुछ करना है जिससे नारी में चेतना आती है और उसका सम्मान सुनिश्चित होता है. यह अनिवार्य इसलिए है कि सभ्य मनुष्य परिवार में नारी -पुरुष  साथ रहता है .और स्वयं पुरुष , नारी का यथोचित सम्मान करता है।
--राजेश जैन
16-12-2014

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