Saturday, March 31, 2018

किसी भी स्त्रीजात में "नारी गरिमा" अवश्य होती है
समझ न पाना नज़रों या दिमाग़ की ख़राबी होती है


किसी भी स्त्रीजात में "नारी गरिमा" अवश्य होती है
समझ न पाना नज़रों या दिमाग़ की ख़राबी होती है

देखते अश्लील दृश्य-फ़िल्में - जो नज़रें ख़राब करतीं 
याद रखते बेटी-बहन-माँ को - नारी गरिमा दिखाई पड़ती

घर या बाहर हमें - नारी का सम्मान रखना है
हैं तमन्नायें उनकी भी - समान हमें समझना है

खेल नहीं यह जीवन - नहीं प्रतिद्वंदी हम होते हैं
नारी-पुरुष हमेशा साथ ही - जीवन-यापन करते हैं

निजी उपभोगों पर परोपपकारों को - जब हम वरीयता देते हैं
निजी सुख कम नहीं अपितु बढ़ते हैं - और भी सुखी रहते हैं


परोपकारों में - तेरा भगवान ,मसीह या ख़ुदा है
भोगों में आसक्त तू - उन्हें ढूँढता कहाँ कहाँ है

आज तुम्हारी आँखें - कहीं नम तो नहीं ??
मुहँ फेरा तुमने - हमें फ़िक्र हो गई है

अपने मन की बात - हमें कहने की ज़रूरत क्या है
हैं सबके मन में - वही बातें हमारे मन में होती हैं

फेसबुक पर भले लोग मिलना भी किस्मत है
वरना इसमें भी छलियों की कोई कमी नहीं

नाराजी से हासिल नहीं होता कभी कुछ
अनुराग़ हो दिल में ख़ुशी ख़ुद ब ख़ुद होती है

कृत्रिम आज के ज़माने में - व्यवहार भी कृत्रिम हुए हैं
मुखौटे लगा बहुत तरह के - इंसान भी कृत्रिम हुए हैं

ख़ुशियाँ तनिक तुम ठहर जाओ ना
तुम्हारे अपने हैं हम मान जाओ ना

पनाह इस तरह दी कि - घर में नज़रबंद किया
एहसान कहते - हमारी ज़िंदगी पे शर्त लगा कर











 

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