ले बहाने कपड़ों के - मनमानी का दोषारोपण करता है
अपनी मर्जी के कपड़े भी - इंसान पहन नहीं सकता है
दो आँखों की दृष्टि के लिए - चश्मे बहुत बनवाता है
पर नारी भी इंसान ही है - ये देख पुरुष नहीं पाता है
जब तक हम राजी नहीं होते - आगे पीछे वक़्त खराब करते हैं
जब बहकावे में आ गए हम - आशिक ये वक़्त देने से बचते हैं
अपनी अनेकों नाकामियों का ग़म , हम करते रह सकते थे
मगर देख कि -
उनके लिए जग अच्छा नहीं , उसे ठीक बनाने में ग़म ग़लत कर लिया
अपनी मर्जी के कपड़े भी - इंसान पहन नहीं सकता है
दो आँखों की दृष्टि के लिए - चश्मे बहुत बनवाता है
पर नारी भी इंसान ही है - ये देख पुरुष नहीं पाता है
जब तक हम राजी नहीं होते - आगे पीछे वक़्त खराब करते हैं
जब बहकावे में आ गए हम - आशिक ये वक़्त देने से बचते हैं
अपनी अनेकों नाकामियों का ग़म , हम करते रह सकते थे
मगर देख कि -
उनके लिए जग अच्छा नहीं , उसे ठीक बनाने में ग़म ग़लत कर लिया
No comments:
Post a Comment