Friday, March 2, 2018

राष्ट्रहित में स्वहित नहीं??

राष्ट्रहित में स्वहित नहीं??
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देशहित में स्वहित नहीं देखना ही मुख्य कारण है कि देश में सभी बातों में अफरा तफरी मची रहती है। हम जानते हैं कि के कम क्षेत्र में रहने वाली हमारी आबादी दुनिया में दूसरे क्रम पर है। इन हालात में - हमारी सर्वाधिक युवा आबादी को उनके प्रतिभा अनुरूप प्रोफ़ेशन के लिए बाहरी देशों में जाना होता है। उनके हित में देशहित है , देश को (अपने परिवारों के माध्यम) वे दुनिया से बहुत बाहरी करेंसी अर्जित कर पहुँचाते हैं। जो हमारी अर्थव्यवस्था का 1 आवश्यक कम्पोनेंट है। यह उनके स्वहित में देशहित है।

हाल ही के वर्षों में अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों ने कुछ बाहरी देश के आ रहे युवा - प्रोफ़ेशनल्स प्रतिबंधित किये हैं , जिनकी छवि उन्हें विश्वसनीय नहीं लगती। ऐसे में यह भारत के लिए उपलब्धि है कि उसकी छवि बाहरी दुनिया में विश्वसनीय बनी हुई है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि देशहित में हमारा स्वहित या सर्वहित है।

विजय माल्या , नीरव मोदी , या दाऊद इब्राहिम आदि जिन्होंने अपना हित , देशहित से पृथक समझा , आर्थिक ठगी अथवा आतंकी गतिविधियों से देश को नुक़सान पहुँचाया। आज भगोड़े होकर अन्य देशों में रहने को मजबूर हैं। मालूम नहीं बची अपनी ज़िंदगी में क्या मिसाल क़ायम करेंगे और क्या अपने साथ ले जायेंगे। यह ना तो देशहित है ना इसमें उनका स्वहित ही है।

हित जनसंख्या में भी नहीं - दुनिया में विभिन्न धर्मों के मानने वालों का अनुपात है उससे लगता नहीं की कभी सारी दुनिया पर एक मज़हब का प्रभुत्व होगा. इसलिए इस इरादे से अपनी औलादों की संख्या अधिक रखने का उपाय व्यर्थ है। इससे हमारी सीमित आय में अधिक आश्रित का लालन-पालन अभाव में होता है ,  जिससे उन पर कम शिक्षित और कम कमाऊ रह जाने का खतरा भी होता है। अभाव में जीवन यापन करने की मजबूरी हमारी संतानों को गलत कामों की तरफ दुष्प्रेरित भी कर सकती है। इसमें न तो हमारा स्वहित और न देशहित ही है।

अब दृष्टि इस तथ्य पर भी डालिये कि - भारत में पारसी आबादी बहुत कम है। पारसी अपने मजहब और अपने सिध्दांतों के प्रति कट्टर भी हैं। वे अपनी इबादत इस तरह करते हैं कि किसी अन्य मजहब को कभी उनसे डिस्टर्बेंस नहीं। वे कभी साम्प्रदायिक संघर्षों में भी नहीं देखे जाते। अफरा तफरी के आज के सामाजिक और राष्ट्रीय वातावरण में भी उनकी सुख समृध्दि और धार्मिक विश्वासों पर कतई प्रभाव नहीं पड़ता। उनका छोटा परिवार या छोटा जन समूह होने पर भी वे किसी धौंस में रहने को अभिशप्त नहीं। वे आर्थिक रूप से समृध्द भी हैं , उच्च शिक्षित भी हैं. उनका इस जीवन शैली में स्वहित भी , धार्मिक स्वतंत्रता भी है और यह सब राष्ट्रहित भी है। पारसी मिसाल हैं इस बात की , कि बिना संघर्ष के , बिना बड़ी आबादी के किसी भी देश में खुशहाली और आर्थिक समृध्दि सहित शिक्षित - सुलझा जीवन कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।

हमसे अब तक चाहे जो भूलें हो गईं हों उन्हें भूलते हुए खुली आँखों और खुले दिमागी कपाट से हम अच्छे विचारों को ग्रहण करें - बिना संघर्ष , बिना खून खराबा के और बेखटक अपने धार्मिक विश्वासों को अपने में जीते हुए व्यक्तिगत ,पारिवारिक , धार्मिक और राष्ट्रहित भी सुनिश्चित करते हुए अपने जीवन से सम्पूर्ण आनंद हम निकाल सकने में समर्थ बनें।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
03-03-2018


 

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