उसने दी सूरत और कहा - तुम सीरत खूब अपनी बनाओ
दिया इंसानी चोला तुम्हें - अब इंसान बन तुम दिखलाओ
उनसे , मैंने कहा - सूरत के अहं में मैं नहीं भूलूँगा
मेरे भगवान - इंसान हूँ , मैं इंसान होना याद रखूँगा
बनाऊँगा सीरत ऐसी मैं कि - बात जब मेरी होगी
खूबसूरत मैं था नहीं - याद मेरी खूब सीरत होगी
मिली अनुकूलतायें तो इतना मशग़ूल - उसमें न हो जाऊँगा
औरों के लिए जीवन वातावरण बनाना - मैं ना भूल पाऊँगा
मेरी हसरतों में तुम शामिल नहीं और - न तेरी हसरतें मुझे लेकर ही हैं
मगर रहे मालूम दोनों को , कि - ज़िंदगी की हसरतें सभी की एक सी हैं
जो किसी को अपने से कमतर आँकता है
मुझे लगता कि वो खुद को नहीं पहचानता है
मोहब्बत के गणित में - दो में से एक गया तो
बचे उस एक के दिल में - शेष मोहब्बत रहती है
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