Saturday, March 10, 2018


मायूसी की रात गुजर कर 
सुबह नई आशा की किरण लाती है
जिंदगी इक मुक़ाम से आगे
नई मंज़िल की दिशा बढ़ जाती है

सिर्फ अपने लिए जिये ही क्यों - कि औरों को खटकें
जियो कुछ ऐसा करने के लिये - कि बच्चे ना भटकें

बच्चों को इक प्लेटफॉर्म दो तो उन्नति कर जायेंगे
जो छोड़ी समस्यायें तो बेचारे उसमें वक़्त गवाएंगे

जिन्हें साधारण माना जाता है - उनसे भी मैं दोस्त होता हूँ
प्रतिभा सबमें है , आशा होती है - मेरा दोस्त बेहतरीन कोई काम करेगा

मुस्कुराओ इस लम्हे में भी - साथ मिलकर कि
बीतने पर इसके - कभी इसकी क़सक याद होगी

इन इतवारों की भी रहते तक कद्र करलें
बीत जायेंगें फिर ये भी कभी ना आयेंगे

बहुत हुआ साथ - तो लगता कि हम उसे सबसे ज्यादा जानते हैं
चूक है- बिन जताये भी हमारे लिए करते हम वह कहाँ जानते हैं


 

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