Friday, March 2, 2018

अमन की संभावना

आज़ादी के समय हम नहीं थे , याद नहीं करना चाहते कि कौमी ज़ुल्म एक-दूसरे पर क्या हुए। एक देश था - जिसके आज तीन टुकड़े हैं। हमारी पूर्व पीढ़ियाँ इस सरजमीं पर पैदा हुईं और जमींदोज भी यहीं हुईं। हमारा कोई दोष नहीं था कि किसी ने भारत या पाकिस्तान में रहना विकल्प चुना। लेकिन जिनके पूर्वजों ने भारत में रहना पसंद किया। आज जब उनमें से कोई इस बात के लिए पछतावा रखता... है तो एक टीस ,एक आत्मग्लानि , एक अपराध बोध हमें होता है कि
1. क्या है जो , हम किसी मुस्लिम को नहीं दे पाते जिससे वे भारत में अपनापन का अहसास कर सकें??
2. हमारी तरफ से क्या वज़ह हैं जिससे उनको तरक्की की गुजांईश नहीं मिलती??
3. हमारी कौनसी खराबियाँ हैं जिनमें उन्हें अपनी और अपने भाई , औलादों और बहन बेटियों की ज़िंदगी पर ख़तरा नज़र आता है??
4. क्या और कारण हैं कि जिनसे देश में जहाँ उनकी पुश्तें दर पुश्तें गुजरीं हैं , उस भारत में उन्हें परायापन लगता है??
इन प्रश्नों का उत्तर तथा अमन की संभावना ढूँढता है - हमारा बेचैन दिल .....

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02-03-2018

दिमाग़ ख़राब नहीं करना होगा ...
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किसी भी सरकारी अथवा अदालती व्यवस्था का नियम और न्याय यह मानकर शिरोधार्य करना चाहिए कि यह देश समाज हमारा है. हिंदू हो या मुसलमान उसे जीवन यापन यहीं करना है - और शांतिपूर्ण तथा सुखद जीवन यापन सुनिश्चित तभी हो सकता है जब हम संघर्ष या भड़कने के बहाने नहीं ढूँढे , और न ही भड़काऊ किसी लेख कथन से उत्तेजित प्रतिक्रिया दें।
वस्तुतः भड़कने में पहले खुद का दिमाग़ ख़राब होता है - बाद में किसी का। जीवन में खुशहाली की अभिलाषा है तो दिमाग़ में सुखद बातें रखनी होगीं , दिमाग़ ख़राब नहीं करना होगा। खोजना होगा कि - हो रही किन बातों में ही हमें ख़ुशी मिल सकती है. यथा वर्तमान में ही देखें तो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत निरंतर मजबूत होता जा रहा है। यह सभी भारतवासियों के लिए हर्ष और गौरव का विषय है चाहे वह किसी कौम / समुदाय का ही क्यों न हो।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02-03-2018


ज़िन्दगी का हरेक लम्हा हमारा है
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आज भारत की युवा आबादी - दुनिया में सर्वाधिक है . ग़ुलामी से मुक्ति को ज्यादा समय न होने से देश में ही  उनके टैलेंट अनुरूप - उन्हें आजीविका अवसर वर्तमान में कम है . इन हालातों में हमारी विश्वसनीयता बढ़ने पर दुनिया में यह अवसर उपलब्ध होते हैं। सरकारी प्रयासों के समानांतर हममें से प्रत्येक का यह कर्तव्य है कि जातिगत मनमुटाव से दूर हो एक दूसरे में मोहब्बत - सहयोगी और कपटरहित भाव रखते हुए , हम दुनिया के सम्मुख आएं। जब औरों के सामने इस देश के नागरिक की विश्वसनीय छवि कायम होगी हम ज्यादा तरक्की करेंगें।
जहां तक आज की नीतियों का प्रश्न है , अगर हम सहमत नहीं तो कल और सरकारें थीं और कल और आयेगीं . पिछले के हासिल कुछ और हैं , आज के भी हासिल कुछ हैं ही। जो हासिल है , उसमें ख़ुशी अनुभव करना होगा . ज़िन्दगी का हरेक लम्हा हमारा है , उसे अवसाद नहीं ख़ुशी से भरना होगा। और जो हम खो रहे हैं , वह खोएं नहीं इस हेतु हमें अपने स्तर पर ही उपाय करने होंगे। हम दूसरों पर दोषारोपण करने की आदत रखेंगे तो अपने जीवन के आनंद से भी स्वयं ही वंचित होंगें। इस पल में आपकी दिलीय अपेक्षा का ख्याल हम करें , और 'और' हमारी अपेक्षा पर न्याय से पेश आये यह प्रेरित करना - जीवन को सकारात्मकता देना होगा ...
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02-03-2018



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