Sunday, March 4, 2018

कल देखी #सीक्रेट_सुपरस्टार

कल देखी #सीक्रेट_सुपरस्टार -
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 बेबाक़ कमेंट
1. देखना अच्छा लगा कि इंसिया का मुस्लिम परंपारिक तरह का अब्बा भी - उसे पढ़ाना चाहता है।
2. नज़मा का शौहर उसे एक फ़ंक्शन में बिना बुर्क़ा पहने चलने कहता है.
3. यह देखना अच्छा है कि इंसिया को गर्भ में मारने की अपेक्षा शौहर से बग़ावत करने का साहस कर नज़मा भागती है और इंसिया को जन्म देती है।
4. अम्मी वैसे तो अच्छी होती हैं किंतु कम पढ़ी लिखी नज़मा को इस बात का विज़न है कि उसकी बेटी की भलाई शिक्षा में है - इसके लिए वह खतरा उठा कर भी गले का हार बेच उसे लैपटॉप दिलाती है।
 5. यूँ तो मुस्लिम परिवार में शौहर द्वारा बीबी को तलाक़ देते देखा जाता है - मग़र अपने ज़िगर के टुकड़े औलाद की तमन्ना और उसके भविष्य की ख़ातिर वह तलाक़नामा पर दस्तखत करने का साहस दिखाती है।
6. बूढ़ी खाला यूँ तो उदासीन सी दिखती है मगर मुस्लिम महिलाओं के दर्द को बयान करते हुए वह इंसिया और नज़मा की हमदर्द दिखती है।
उपरोक्त बातें तो सही परिप्रेक्ष्य में ग्रहण की जानी चाहिए - जिसके लक्ष्य आमिर ने यह मूवी बनाई है। किंतु इसे देख यह प्रेरणा नहीं लेनी चाहिए कि
7. इंसिया की तरह कोई बेटी मुंबई नहीं पहुँचे - मुंबई सिने इंडस्ट्री में कोई सिनेकर्मी ऐसा नहीं मिलेगा जो शक्तिकुमार की तरह एक 17 सालाना लड़की को बाप की तरह सीने से लगाएगा.
8. नज़मा की तरह किसी आम मुस्लिम परिवार की महिलाओं को - शौहर की यूँ खिलाफत करने की जरूरत नहीं - पीढ़ियों से चले आ रही मर्द की सोच वह रातोंरात नहीं बदल सकेगी। उसे कुछ और वक़्त का इंतज़ार करना होगा . कुछ और समय शौहर के ज़ुल्म सहने होंगे। मर्द भी इंसान हैं - मौका देना होगा कि #सीक्रेट_सुपरस्टार और #लिप्स्टिक_अंडर_माय_बुरका तरह की पेशक़श देखते हुए अपने परिवारों की ज़नानाओं के अरमान और ख़्वाहिशों को समझ सकेंगे.
9. इंसिया की तरह लैपटॉप तरह की वस्तु कोई ऊपर से ने फेंके - हो सकता है किसी इंसान के सिर वह जा लगे।
अंत में आमिर खान को धन्यवाद कि पिछले कुछ समय से वे सामाजिक समस्याओं पर मूवीज़ दे रहे हैं। इस बात के लिए भी आमिर का आभार कि उन्होंने मुस्लिम होते हुए - मुस्लिम ज़नाना के हक़ में बात रखने की हिम्मत दिखाई। आमिर को यह बिन माँगे की मेरी सलाह है कि सामाजिक मुद्दे पर बनाई फ़िल्म में वे फ़िल्मी मसाले न दें। क्यों वे मॉडल या मूवीज में काम करने वालों की फूहड़ हरकतों को सहज देख लेने की आदत दर्शक में भर देना चाहते हैं??? अभी भी हमारा समाज इतनी ओपननेस को सहज नहीं लेता है। अनेकों कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे - युवा इसे देख इस तरह की ओपननेस की नकल करते हुए अपनी ज़िंदगी बदरंग करने को विवश होते हैं।
मेरी पीके पर लिखी आमिर पर टिपण्णी से यह अच्छी है , अगर आमिर अच्छा करेंगें तो मैं उन्हें अच्छा ही कहूँगा मैं किसी से कोई दुराग्रह नहीं रखता।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05-03-2018


 

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