Tuesday, March 6, 2018

 पल पल उलझने-सुलझने का नाम- ज़िंदगी है
उलझनों को सुलझाया उसने जी - ज़िंदगी है

हमारा प्यार ऐसा है तुमसे कि - तुम हमें अपना मानो या नहीं
 हमारा तुमसे अपनासा है जो - तुम्हें ज़िंदगी में खुश देखना चाहता है

किसी व्यक्ति-विशेष की - जब प्रशंसा मैं करता हूँ
अपराधबोध होता कि - अन्य से अन्याय मैं करता हूँ

निंदा में जब किसी की मैं कर बैठता हूँ
लगता है ऐसे जैसे खुद को मैं नहीं देखता हूँ

रोकर सहानुभूति बटोरूँ तुम्हारी अब इसमें विश्वास मुझे करना नहीं है
है बेटी मेरी तुमसे -उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुझे रोना नहीं है

पति होकर - तुम्हें नारी का सम्मान आया नहीं है
मैं देखूँगी कि नारी सम्मान की तमन्ना - बेटी के लिए करते हुए तुमको

कारवाँ -ए -ज़िन्दगी हसरतें हैं - कुछ पूरी , कुछ अधूरी
मिले का जश्न, न मिले का खेद बिन - जिंदगी जीनी है पूरी




 

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