Friday, March 2, 2018

किसे फ़ुरसत आज किसी का हमदर्द दिखने की
मगर इंसानों की बस्ती है हमदर्द मिल जाया करते हैं


बेवज़ह मलाल करने की तुम्हारी - ख़राब आदत है
वरना मज़ाल किसकी  हाथ में ग़ुलाल लिए - गाल मेरे छू सके

कितनी ही करूँ बयां मैं बात - मेरी अपनी
तुम्हारी भी करूँ तो लगतीं हैं - मेरी अपनी

मुझे चाहिए कोई सज्जन सा 
बेहतर या हीन महत्वहीन है

मेरे खत में यह होता है कि मुझे
अपने या तुममें नहीं फ़र्क लगता है

यह कि मन में हमारे जीवन कामनायें सब एकसी हैं
फिर भी हम हिंदू-गैरहिंदू या नारी-पुरुष भेद करते हैं

ग़र यार - दिलदार तो ख़त ही की ज़रूरत नहीं
दिल के तार जुड़े होते - अनकही समझ लेते हैं

हाजिर ज़बाब ही मुझे न समझ लेना
मैं तो इक इंसान - थोड़ा इंसान सा हूँ

ख़ामोश लफ़्जों को मेरे - आप सुन लीजिये
सुनना आपकी तारीफ़ - किसी को पसंद आये न आये

प्यार है तो शेष - हमेशा प्यार रहेगा
जो खत्म हो जाये - चीज प्यार नहीं

उम्र अभी छोटी है - मुहब्बत तुम्हें समझनी होगी
ज़िस्मानी नहीं - रूहानी को मुहब्बत कहनी होगी

"सभी इंसानों में भीतर - रूह एकसी अरूपी निर्मल है
परिवेश से दुष्प्रेरित हो - मलिनता नज़रों में चढ़ती है"







 

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