Saturday, January 24, 2015

जयस्तंभ


जयस्तंभ
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तीन वर्ष विवाह के हो चुकने पर एक सुबह ,सुदृढ़ और गरिमा , घने कोहरे में घूम रहे हैं , कोहरा इतना घना है कि सामने जयस्तंभ भी नज़र न आ रहा है । सुदृढ़ ने कहा - गरिमा , लगता है , जयस्तंभ एनक्रोचमेंट में हटा दिया गया है। गरिमा (रुखाई से ) - सामने स्पष्ट दिखने पर कोई वस्तु न दिखे तब उसे हटाई गई कहना ठीक है।
सुदृढ़ - यह , मनोविज्ञान होता है , जिसे हम पसंद नहीं आते , उसकी बात में कमी देखते हैं। गरिमा चुप सुनती है। सुदृढ़ आगे कहता है - गिलास आधा भरा देखना , अनुकरणीय दृष्टिकोण होता है। गरिमा - यह , विषयांतर है। सुदृढ़ - नहीं , अगर तुम मुझमें अच्छाई न देख सकोगी - तो साथ और जीवन ,आनंददायी न होगा , यह गिलास को आधा खाली देखना कहलायेगा। गरिमा - लेकिन बात तो जयस्तंभ की थी , यह गिलास कहाँ से आ गया ?सुदृढ़ - मैंने तो वह हास्य के लक्ष्य से कही थी , तुमने हँसा नहीं,अगर तुम्हें मेरे साथ में आनंद आ रहा होता तो तुम इसे इस तरह न लेतीं । गरिमा - तब भी गिलास तो नहीं आता है।  सुदृढ़ -आता है , हम विवाहित हैं , साथ लम्बा है।  मेरे में 50% जो अच्छा है वह तुम देखना , तुममें 80% जो अच्छा है , मै , देख रहा हूँ। इससे आनंद मिलता रहेगा ,जीवनपथ पर हँसकर आगे बढ़ेंगे इस तरह। गरिमा - मुस्काती है। सुदृढ़ - अब ,बताओ गरिमा , जयस्तंभ के बाद गिलास आता है , न ? गरिमा प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखते हुए  - हाँ , सुदृढ़ , बिल्कुल आता है , दोनों खिलखिला कर हँसते हैं , अब वे ,जयस्तंभ के पास हैं , जो कोहरे में भी दिखने लगा है   .......
--राजेश जैन  
25-01-2015

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