धुंध हटा दृष्टि से दो नारी को तुम आदर
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क्या कहती पेज से घने कोहरे की चादर ?
धुंध हटा दृष्टि से दो नारी को तुम आदर
वासना दूषित दृष्टि पर पड़े पाले से तुम
भावुक नारी मन को देख नहीं पा रहे हो
मन में उनकी दयालुता और करुणा को
हे क्रूर तुम अनुभव नहीं कर पा रहे हो
तन पर सीमित वासना दूषित दृष्टि से
तुम कोमल उनके मन पर दे रहे छाले हो
मनुष्य तुम पुरुष , नारी भी मनुष्य ही है
मन मिलने से मधुर संगीत ही बजता है
मधुरता के मनु समवेत मन तार तरंगों से
सभ्यता की मंज़िलें नई तय होती आई हैं
संस्कृति में नारी तन एक के समीप होता है
प्रयासों से कई के, मन उनका आहत होता है
नारी मन तुम भाँपो त्याग उनके तुम देखो
क्षमता से करने के न्याय अवसर उसे दे दो
"नारी चेतना" पेज , सूर्य बन ऊष्मा ये लायेगा
गर्मी से वासना धुंध मनु दृष्टि में पिघलायेगा
सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
सम्पूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है
--राजेश जैन
18-01-2015
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क्या कहती पेज से घने कोहरे की चादर ?
धुंध हटा दृष्टि से दो नारी को तुम आदर
वासना दूषित दृष्टि पर पड़े पाले से तुम
भावुक नारी मन को देख नहीं पा रहे हो
मन में उनकी दयालुता और करुणा को
हे क्रूर तुम अनुभव नहीं कर पा रहे हो
तन पर सीमित वासना दूषित दृष्टि से
तुम कोमल उनके मन पर दे रहे छाले हो
मनुष्य तुम पुरुष , नारी भी मनुष्य ही है
मन मिलने से मधुर संगीत ही बजता है
मधुरता के मनु समवेत मन तार तरंगों से
सभ्यता की मंज़िलें नई तय होती आई हैं
संस्कृति में नारी तन एक के समीप होता है
प्रयासों से कई के, मन उनका आहत होता है
नारी मन तुम भाँपो त्याग उनके तुम देखो
क्षमता से करने के न्याय अवसर उसे दे दो
"नारी चेतना" पेज , सूर्य बन ऊष्मा ये लायेगा
गर्मी से वासना धुंध मनु दृष्टि में पिघलायेगा
सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
सम्पूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है
--राजेश जैन
18-01-2015
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