Thursday, January 1, 2015

माँ के सोने के गहने

माँ के सोने के गहने
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सुदृढ़ , तुम्हें , मालूम है न, हम ग्रामीण पृष्ठभूमि के गरीब किसान हैं … पिता , कह रहे थे , सुदृढ़ , पुणे में जॉब ज्वाइन करने जाने की पैकिंग करते हुए सुन रहा था। तुम्हारी , इंजीनियरिंग की फीस के लिये , तुम्हारी माँ के सोने के गहने बिके हैं , तुम्हें मालूम है न सुदृढ़?
सुदृढ़ -हाँ , बाबा , मै जॉब से कमा कर उन्हें बनवाऊँगा ,सोने के गहने।
पिता - मै ,ऐसा करने नहीं कह रहा ,बेटे ! .......  कुछ रुक के पुनः कहते हैं - इसलिए कह रहा हूँ , इतनी दूर जा रहा है , कोई ख़राब काम न करना बेटे , इतनी दूर से हमें पता भी न चलेगा।   सुदृढ़ , हाथ का काम छोड़ , बाबा के पास , आता है , कहता है  .... बाबा , विश्वास रखो , मुझे माँ और आपके लिये अपनी जिम्मेदारी का अहसास है , कहते हुए , बाबा और पास बैठी , माँ के चरण स्पर्श करता है।
इस बात को लगभग ढाई महीने हुए ,सुदृढ़ ने पुणे में आ जॉब ज्वाइन किया है। आज ,नये वर्ष के सेलिब्रेशन में , सभी कंपनी एम्पलॉयी पी -खा रहे थे।  सुदृढ़ , ड्रिंक नहीं करता था वह चाय पी रहा था। तब जबरन फ्रेंड्स उसे उठा , खींच ले गये यह कहते , नये वर्ष में पियेगा नहीं तो वर्ष भर खाक , मजा करेगा।
सुदृढ़ के मन में पापा की कहते हुए वह छवि घूम रही थी , अनमना वह जाकर , पहली बार ड्रिंक शिप कर रहा था , और छूटा ये चाय का गिलास , सुदृढ़ के बदलने का दृश्य देख तनहा ही जैसे खेद कर रहा था।  
--राजेश जैन
-०१-०१-२०१५

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