Tuesday, January 6, 2015

एसिड अटैक



एसिड अटैक
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वर्ष 1985 में , गर्मी की एक रात में 19 वर्ष का एक लड़का , आँगन में सोया था , तब कोई उसके चेहरे पर एसिड डाल गया। अभी उसकी दृष्टि दुनिया देखने की बन ही रही थी , इस अटैक से जीवन भर के लिये उसकी दुनिया अँधेरी हो गई। नेत्र ज्योति खत्म हो गई और चेहरा भी बिगड़ गया। रिज रोड , जबलपुर पर पिछले आठ , नौ वर्ष से वे नियमित किसी-किसी का साथ ले , वॉक पर नियमित आते हैं।
राजकुमार कुरील
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जी -हाँ , लेखक को उन्होंने अपना नाम ये बताया।  आज वे लकड़ी से टटोल अकेले ही वॉक करते दिखे , तब लेखक ने पूँछकर उनका , हाथ थामा। लगभग तीन किमी , चलने के बाद , उनके मित्र मिले ,वे उनके साथ हुए , तब तक उनसे हुये वार्तालाप से ऐसी प्रेरणात्मक बातें पता चली जो ,लिखने के लिए , लेखनी मचल गई।
सुबह सवा चार बजे
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वे जागते हैं , बच्चों के लिए पानी , गर्म करने रखते हैं ,चाय बना लेते हैं , घर आँगन सफाई करते हैं । दैनिक स्नान इत्यादि से निवृत हो , वॉक को निकल जाते हैं।  आठ किमी , घूमते हैं , कहते हैं रिज रोड पर अच्छे लोग मिलते हैं . उनके मित्र , बने लोग रईस हैं . मित्रों को आवाज से पहचान लेते हैं। मैंने  पूछा कौन ने आवाज दी अभी , बोलते हैं -राजीव गुप्ता , ठेकेदार हैं। मैंने पूछा -क्या शौक हैं , कहा विशेष कुछ नहीं , फिर हंसकर बोले -रात में कभी कभी , मित्रों के साथ  बैठ जाते हैं।
शादी
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पूछा , शादी कब हुई ? बोले ,मैंने -शादी नहीं की। पूछा , अभी आप बच्चों की -कह रहे थे ? बोले -भाई के साथ रहता हूँ , उनके हैं। मैंने पूछा -घटना के पहले क्या , किया करते थे ? बोले - टेलरिंग करता था , फिर दुर्घटना के बाद , सदर में स्टैंड चलाकर , तीन भाइयों की शादी करवाई।
29 साल
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पूछा -लम्बा अरसा संघर्ष में गुजारा ? बोले -बैठ जाने से नहीं निकलता। अच्छा -बुरा चलता रहता है। अच्छे ,लोग मिलते हैं। सहारे की बात पर -हँसकर बोले , "तुम बेसहारा हो तो ,किसी का सहारा बनो , तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा"
मिसाल
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सबकुछ होकर भी ,नहीं होने का दुखड़ा रो रही दुनिया - सीखे राजकुमार साहब से , आँखे नहीं है , किन्तु निराशा में डूबों के सामने, अपनी कर्मठता से पथ प्रदर्शन का हौसला रखते हैं। आँखे नहीं हैं , साधारण है , रईसों से मित्रता प्राप्त है उन्हें। दोनों बातें सब में हैं ,अच्छाई और खराबी , लेकिन स्वयं मै अच्छा तो मेरे साथ अच्छाई ही करेंगे। आँखे ,न रही ,तब भी जीवन तो है।
हम
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देख नहीं पाते , 1985 की दुनिया ही , लड़कपन की नज़रों की ,तस्वीर बन रह गई . मोबाइल उपयोग करते उन्हें देखा ,फिर  भी नहीं जानते होंगे , कैसा दिखता है।  मैंने कहा फेसबुक पर लिखता हूँ।कहते हुए मैंने सोचा  क्या जानें वे ?-क्या होती है फेसबुक। इतना जान लिया - मै अच्छा हूँ। एसिड फेंकने वाले ने न जाने किस रंजिश का बदला लिया था . आज अगर इन्हें देखता होगा तो अपने किये पर ग्लानि से भरता होगा . किसी भी गलती की इतनी बड़ी सजा शायद नहीं होती . 29 साल का और न जाने कितना और चलेगा अँधेरा यह।   हम अच्छा बर्ताव कर , अनुभव करा सकें कि दुनिया अच्छी है , तो जब वे जायेंगे , यह तो रहेगा उन्हें स्मरण - दुनिया भली भी थी।
--राजेश जैन
06-01-2014

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