Sunday, January 18, 2015

तुम्हें आदरणीया मै कहता हूँ

तुम्हें आदरणीया मै कहता हूँ
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बालिकाओं पर अत्याचार की सुन मै रोता हूँ
उभर रहे वीभत्स समाज चित्र से मै डरता हूँ

संस्कृति में नारी तन एक के समीप होता है
कृत्यों से कई के, आहत उनका मन होता है

मन से जुड़ें अनेक से नहीं बुराई कोई होती है
मिलते मन तो साथ में नई मंज़िल मिलती है

आविष्कृत बेतार से सब बात किया करते हैं
तारों से मन पढने में असफल हुआ करते हैं

मन के जोड़ तार मनुष्य मन की मै पढता हूँ
पुरुष का आदर तुम्हें आदरणीया मै कहता हूँ

जगाऊँ चेतना नारी में नित चिंता करता हूँ
मानवता के आदर के लिए यत्न मै करता हूँ

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
परिपूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है

--राजेश जैन
19-01-2015

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