Monday, January 19, 2015

साथ कई-कई बार रेप हो चुका होता है

साथ कई-कई बार रेप हो चुका होता है
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नहीं, जो प्रतिक्रिया नारी उग्रता में है। पूरी सही अभी नहीं है। हर पुरुष अभी बुरा नहीं है। और जो बुरा है वह हर कहीं बुरा नहीं है। जो बुरा है , हर समय वह बुरा नहीं है।  पुरुष जितना अभी बुरा है , पूरी संभावना अभी शेष है।  उसकी बुराई को अशेष कर , उसे अभी अच्छा -सज्जन पुरुष बनाया जा सकता है।
हर पुरुष जब हर समय बुरा नहीं है तो , उस समय को रोका जा सकता है , जब वह बुरा बनता है। हर पुरुष हर कहीं अगर बुरा नहीं है तो पुरुष को वहाँ पहुँचने से रोका जा सकता है , जहाँ वह बुरा बन जाता है।
जो मनुष्य मन में बुराई बढ़ाते हैं उन स्त्रोतों को पहचान के हम , अभी बुराई नियंत्रित कर सकते हैं ।
आदरणीया तस्लीमा नसरीन के ये शब्द हर पुरुष पर सही नहीं हैं -
"बल्कि सभी लड़कियाँ रास्ते में होने वाली अश्लील घटनाओं को चुपचाप झेलने के लिए तैयार रहती हैं। वे यह भी जानती हैं कि उनके कपड़े पर पान थूककर अपने गन्दे दाँत चमकाता, हँसता कोई अनजान युवक निर्लिप्त भाव से चला जायेगा।"
इस पेज की एक एडिटर , सुश्री त्रिपाठी के द्वारा की गई पोस्ट के यह शब्द सभी बालिकाओं पर सही नहीं हैं -
"मन का भक्षण भी रेप है… जब तक एक लड़की इस दुनिया को समझ पाने के लायक बनती है तब तक उसके साथ कई-कई बार रेप हो चुका होता है… रेप उसके सपनों का, उसकी इच्छाओं का उसके अरमानों का"
लेखक ने बालिकाओं को अनेकों परिवार में खुश रहते देखा है।  सपने, अपने पूरे करते देखा है। बेटी के पिता हो , बेटी के साथ बचपन से मित्रवत रहते कभी , उसे इन बातों से व्यथित ,घबराया नहीं देखा है। अपवाद में ही , कभी ऐसी घटनायें मित्रवत पिता ने ,उससे सुनी है।  उपाय उसे , बता देने पर , सुरक्षा करना बेटी ने सीखा है।
आदरणीयाओं द्वारा उध्दृत अंश को भी झूठा नहीं माना जा सकता है।  नारी मन को नारी ही ज्यादा जानती है। माना कि ,दोष पुरुष व्यवहार और कर्मों में अनेकों हैं। लेकिन दोष चरम सीमा पर नहीं हैं।  लाज और स्वाभिमान जिसे कहने से परम्परा आपको  रोकती  आई थी । उससे पुरुष दृष्टि में महत्व आपका मूक प्राणी से ज्यादा नहीं रह गया था। अच्छा है , हमारी संगिनी नारी -आप मुखर हुईं हैं। अब जब पुरुष , ये प्रतिरोध पढ़ेगा , आप कहेंगी और वह सुनेगा। तब समझ लेगा।  नारी भी उसके समतुल्य ही मनुष्य है।
अतिशयोक्ति /अन्योक्ति में इस तरह की उग्र प्रतिक्रियाओं से यद्यपि लेखक असहमत है। किन्तु आपको , जिसने सब भुगता है , चुप रहने की सलाह नहीं देगा। घर -परिवार , बनाती आईं , जिसके केंद्र में आप स्थित रही हैं उससे आपकी रचनात्मकता के गुण का लेखक आदर करता है । आप , जैसे ही एक संतोषजनक स्थिति पर आ जायेंगी , निश्चित ही धीरता  -गंभीरता आपमें स्वयं परिलक्षित होने लगेगी।  आप निश्चित ही एक अच्छा समाज चित्र खींच लेंगी। लेखक धीरता रखेगा। आपके प्रयास से बनता सुंदर समाज चित्र , जिसमें नारी सम्मान भी सुनिश्चित होता है , तल्लीनता से देखेगा। जो सहायता के योग्य मानेगीं , उसे निभाने में स्वयं को भाग्यशाली मानेगीं। स्वयं सुधरेगा , पुरुष साथियों से अनुनय भी करेगा। अंत में स्वयं को प्रोत्साहित करने के लिए -शुभप्रभात -

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
परिपूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है
--राजेश जैन
20-01-2015

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