Wednesday, January 28, 2015

आने वाला समाज चित्र

आने वाला समाज चित्र
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नारी विभिन्न अवस्थाओं में , विभिन्न प्रयोजनों से सबसे सुरक्षित स्थान अपने घर -परिवार से बाहर निकलती है
1. वह , स्टूडेंट के रूप में , अपने पापा ,अपने भाई जैसे व्यवसाय , उच्च पदों पर आसीन हो , परिवार के लिए धन अर्जन करने के सपने के साथ स्कूल /कॉलेज जा/आ रही होती है
2. वह वर्किंग लेडी के रूप में ऑफिस से थक हार के , और भूखी हो , तीव्र क़दमों से घर तरफ बढ़ रही हो सकती है। घर में उसका छोटा बच्चा है , तो ममत्व भी हो सकता है कि  जो उसके मन में हिलोरें ले रहा हो सकता है.
3. वह किसी रोग के उपचार की दृष्टि से जा /आ रही हो सकती है . उसे वक्ष आदि से सम्बंधित कोई तकलीफ हो सकती है , जिस से वह चिंतित और उदास हो सकती है।
4. वह ग्रामीण अंचलों में जल भर लाने या शौच आदि के लिए जा /आ रही हो सकती है।
5. वह पुरुष का हाथ बँटाने गृहस्थी के सामान खरीदने मार्केट जा /आ रही हो सकती है
6.  या - किसी उमंग , जिसमें बच्चे की उपलब्धि पर स्कूल , भाई के विवाह में , मंदिर जाने के लिए अथवा किसी उत्सव को मनाने लिए प्रसन्नता के साथ कहीं जा /आ रही हो सकती है।
नारी के हृदय और मन में उमड़ रही चिंता ,पीड़ा या उमंग से अनजान रह , पुरुष सिर्फ वासना पूर्ण दृष्टि से उसे घूरता ,छेड़ता (बहुतायात में होता है ) या भ्रम प्रेमजाल (फ्लर्टिंग ) में निभाने की गंभीरता बिना फँसाता है ( बहुधा होता है ) या उस पर रेप अटेम्प्ट या  रेप करता है।  तो नारी के उमंग /प्रसन्नता को तोड़ता है। चिंतित अगर वह है तो उसकी चिंता बढ़ाता है। रोगिणी गर वह है तो , जिस अंग के कष्ट से वह पीड़ित है उसी अंग पर वासना दूषित दृष्टि कर निहारता है। तब सभ्य मनुष्य समाज की पुरुष रीत पर नारी को गहन पीड़ा और हैरानगी होती है। उसे अपने आँचल में पाले पुरुष के इस रूप पर क्षोभ होता है।
पुरुष के सोचने /सुधारने के लिये उपरोक्त तथ्य पर्याप्त हैं। वह गहन विचार करें - पुरुष के उलट नारी - कभी अपनी वासना दूषित दृष्टि से न तो घर में और न ही बाहर कहीं भी पुरुष को इस तरह परेशान नहीं करती है। फ़िल्मी दृश्यों से लेखक ने सिर्फ रेडलाइट क्षेत्र में ऐसा होता पाया है। जो पढ़ा है -उस अनुसार भी नारी वहाँ दैहिक व्यापार , अपनी ख़ुशी से नहीं करती है . बल्कि वहाँ भी वह पुरुष जबरदस्ती से बिठा दी गई होती है। अति वासना की दृष्टि चाहे वह पुरुष या नारी की जिसमें न करुणा ,और न दया को स्थान और न ही किसी के सम्मान की रक्षा होती है , निंदनीय और त्याज्य है।
पुरुष अपनी दृष्टि में न्याय लाये , अन्यथा आने वाला समाज चित्र - पूरे विश्व को रेडलाइट क्षेत्र में परिवर्तित होने का बन रहा है.  जहाँ नारी तो मूलभूत आवश्यकताओं की बाध्यता में और पुरुष दिलजोई के लिये दैहिक व्यापार को तत्पर रहने को श्रापित होंगे।  जिसमें मनुष्य होने की श्रेष्ठता मिट जायेगी , मनुष्य पुनः जानवर के समकक्ष हो जायेगा।
--राजेश जैन
29-01-2015

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