Monday, January 19, 2015

क्षणिकायें निरंतर -निरंतर

क्षणिकायें निरंतर -निरंतर
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दामन पर दाग
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दामन पर दाग देने वालो
दामन पर दाग न लगाओ
गर लगाओ तो दृष्टि बदलो
दाग नीचे जीवन न दब जाए


तरक्की
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हमारी अपनी हो नारी , अतः
अपने लिए नहीं हम , तरक्की
तुम्हारे लिये ,तुम्हारी तरक्की
जिसमें मानव तरक्की चाहते है


हार
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आत्मावलोकन के कुछ अवसर होते हैं
 कुछ जगह हार के सब जीता जाता है
 जीवन में जीत से ही न जीता जाता है
 हारने की वीरता से जगजीता जाता है


परछाई
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दूसरे में दिखती बुराई कभी कभी
परछाई अपने मन की ही होती है


'नफरत'
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जो पाया दुनिया में
वही दुनिया को लौटाया जा सकता है
यदि धोखा मिले तो
बरबस ,'नफरत' ही लौटाई जा सकती है


शादी
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"शादी को इतनी बड़ी , मुसीबत क्यों बताते हो ?
भाई तुम ,शादी बाद खोते नहीं ज़िंदगी पाते हो "


--राजेश जैन
19-01-2015

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