Friday, January 30, 2015

गर्ल्स ही , गर्ल्स हित में अवरोध न बने

गर्ल्स ही , गर्ल्स हित में अवरोध न बने
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आज की गर्ल्स परिवार में अभी बेटी ,बहन और ननद है। कल वह किसी परिवार में पत्नी , भाभी , जेठानी , माँ और बाद में सास होगी। नारी के लिए "गर्ल्स" शब्द प्रयोग कर आलेख लिख रहा हूँ। आज ,परिवार में गर्ल्स के शोषण और प्रताड़ना पर उल्लेख केंद्रित है।
घर परिवार में गर्ल्स को जो विषम स्थितियाँ झेलनी पड़ती हैं , उनमें से अधिकतर में घर की गर्ल्स (विभिन्न नारी रूप ) का योगदान/दोष भी है, क्या हैं वे पारिवारिक कलह , शोषण और प्रताड़नाएं ?
1. नई दुल्हन पर , विभिन्न ताने -उलाहने , और दहेज की प्रताड़नाएं। इनमें दर्ज होने वाले केसेस में , सास जेठानियों और ननद के भी नाम , पुरुषों के साथ आते हैं। स्वयं गर्ल्स इन अत्याचारों में पुरुष सदस्यों का साथ न दें ।
2.  पत्नी के साथ पति द्वारा मारपीट। पति , गर्ल्स के ससुराल में बेटा और भाई होता है। परिवार की इस हिंसा में भले ही वह बंद शयनकक्ष में हो , जानकारी अन्य सदस्यों को होती है। माँ , जेठानियाँ और बहन द्वारा  अपने बेटे (,देवर और भाई) पर ऐसा न करने का दबाव  बनाया जाना चाहिए।
3.  बदले हुए परिदृश्य में , नई दुल्हन , हो सकता है , किसी अन्य से प्रेम की कोई हिस्ट्री के साथ इस घर में आई हो। ऐसे में पति के अपनी नवब्याहता के प्रति रोष हो सकता है। बहन , भाभी और माँ , अपने बेटे को इस तरह समझा सकती हैं कि बेटे (भाई) तुमने भी तो अन्य से फ्लर्टिंग की है , तुम्हारी वह भूलेगी तुम अपनी पत्नी की भूल जाओ।
4. कन्या भ्रूण हत्या के पीछे भी बहु पर सास , ननद (और ब्याहता बेटी की माँ भी ) के तानों और सलाह का भी हाथ होता है। ऐसा वे न करें।  इससे भी कन्या के भ्रूण रूप में ही मारे जाने के श्राप से मुक्त होने में सहायता मिल सकेगी।
आज की गर्ल्स , भविष्य का भारतीय समाज है। बेटे -भाई आदि द्वारा पत्नी पर ज्यादती में जब तक , किसी अन्य परिवार की बेटी (यहाँ की बहू) का साथ देने का साहस और मानसिकता वह नहीं बनाएगी , तब तक स्वयं गर्ल्स होकर गर्ल्स हित में अवरोध बनती रहेगी। और तब तक गर्ल्स इस देश में उन्नति की कहानी नहीं लिख सकेगी।
लेखक का मानना है , माँ , बहन और भाभी के साहसिक विरोध के बाद , पति या श्वसुर बना पुरुष किसी बहू पर अत्याचार नहीं कर सकता है। हमारे समाज में क्या अब तक हुआ उससे सबक लेकर , इस तरह निर्भीक होकर आज की गर्ल्स सामने आये । वह नया समाज और परिपूर्ण सँस्कार की ठोस नींव रख सकती है।
Note:-लेखक समाज बदलने में , गर्ल्स की सहायता का इक्छुक है। लेख से ऐसा आशय न निकाला जाए कि पुरुष को क्लीन चिट दी जा रही है , वह तो दोषी है ही। इस लेखक द्वारा , बहुत से आलेखों में सीधा लक्ष्य पुरुषों की बुराई पर भी किया जा चुका है।  ( परिवार के बाहर , इसी शीर्षक के प्रसंग पृथक लेख में लिखे जायेंगे ) .

--राजेश जैन
31-01-2015

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