स्वाभिमानी
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नारी इस देश की स्वाभिमानी है
संघर्षों से जूझने में वह मर्दानी है
सार्वजनिक रूप से सिसकती वह
बर्बरता समाज की व्यक्त होती है
कवि समझता असहनीय पीड़ा को
क्योंकि कवि भी तो स्वाभिमानी है
आव्हान करता बर्बरता छोड़ने का
पुरुष उसका स्वयं पर ललकारता है
मिटा दो कष्ट नारी के, अपनी ही है
भला अपनों को वीर कोई मारता है
--राजेश जैन
18-01-2015
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नारी इस देश की स्वाभिमानी है
संघर्षों से जूझने में वह मर्दानी है
सार्वजनिक रूप से सिसकती वह
बर्बरता समाज की व्यक्त होती है
कवि समझता असहनीय पीड़ा को
क्योंकि कवि भी तो स्वाभिमानी है
आव्हान करता बर्बरता छोड़ने का
पुरुष उसका स्वयं पर ललकारता है
मिटा दो कष्ट नारी के, अपनी ही है
भला अपनों को वीर कोई मारता है
--राजेश जैन
18-01-2015
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