अब मैंने भी देखी पीके
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पी नहीं , फिल्म देखी। लेखक की दृष्टि सिनेमा को, सिने कलाकार को बुराई का पिंड मानने के पूर्वाग्रह (Biased) से ग्रसित है , इस दृष्टि से देखने पर लेखक की निम्न प्रतिक्रियायें हैं -
1. पीके , का किस सीन अब बच्चे अपने पेरेंट्स साथ सहजता से देख रहे हैं , जल्दी ही भारतीय सड़कों पर ये दृश्य आम हो जायेंगे।
2. कार का जो उपयोग अभी कम ही जानते हैं , इस फिल्म की लोकप्रियता साथ सब जान जायेंगे। हाई स्कूल के बच्चे अब माँ -पिता बाइक की नहीं कार की जिद करेंगे।
3. पीना तो पुरुष के लिए भी अच्छा नहीं , अनुष्का के माध्यम से वर्किंग लेडी में ड्रिंक्स को सामान्य रूप में लेने को पीके प्रेरित करती है।
4. विवाह पूर्व सेक्स भी सामान्य सी बात है, फिल्म द्वारा यह ,पुनः इस रूप में दिखाया गया है।
5. 2 घंटे के साथ में ही , अंतरजातीय , अंतरराष्ट्रीय दो अजनबियों में ऐसा प्रेम हो जाता है कि दूसरे दिन विवाह कर सकते हैं। फिल्म ने यह परोसा है। जिसे फॉलो कर अनेकों युवा मुसीबत गले लगा चुके हैं।
आकर्षक पैकेजिंग -प्रेजेंटेशन
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अच्छी पैकेजिंग में सडा ,हानिकर भी हम ,मजे से खा लेते हैं। अपना नुकसान करा के विक्रेता /निर्माता को मालामाल बना देते हैं। ऐसा ही यहाँ है , करोड़ों की पैकेजिंग के साथ , लोकप्रिय कुछ कलाकारों के साथ , हमारे समाज को हानि देते षणयन्त्रों को छुपाकर हमें यही नहीं अनेकों फ़िल्में प्रेजेंट कर रही हैं।
पहली बार लेखक की अति आक्रमकता
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सब धर्मगुरुओं को "रोंग नंबर" बताने वाले , सबमें बड़े "रोंग नंबर" यही हैं। जी , हाँ ये फिल्म वाले।
"मंदिर, देश में बहुत नारी-पुरुष , जाते हैं !
मस्जिद कुछ कम जाते हैं !
गुरद्वारे और चर्च और कम जाते हैं!
किन्तु सिनेमंदिर जिनमें ये "रोंग नंबर" बैठे हैं!
बडे -बूढ़े नारी पुरुष हर बच्चे जाते हैं "
क्या पाता है बच्चा वहाँ से ?
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माता पिता को भुला वहाँ से
"रोंग नंबर" फैन हो जाता है
और
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वासना लिए घूमता नज़रों में
मर्यादा नारी से भूल जाता है
और भी
--------
समय बर्बाद फेवरेट के पीछे ,
कर पढ़ने में पीछे रह जाता है
क्या देता , क्या लेता इनसे ?
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इनको प्रौन्नत धन व्यय से करता
स्वयं अभावों से जूझता रह जाता है।
कब तक हम पैकेजिंग और प्रेजेंटेशन के अंदर के , घातक तत्वों को पहचानने की दृष्टि नहीं पायेंगे। कब तक अच्छे दिखते के प्रलोभनों में आ अपना जीवन , ख़राब करते जाएंगे? कब तक ?
सिने मंदिर की सच्चाई
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ये सिने मंदिर कोई जाये न जाये। सबमे बड़े ये "रोंग नंबर" , टीवी के माध्यम घर घर पहुँचे हुए हैं , करोड़पति बनाने के सपने और सत्य दिखलाने के धोखे में , गर्ल फ्रेंड -बॉयफ्रेंड चक्कर , नारियों में ड्रिंक्स , विवाहेत्तर संबंध आदि जिसने भारतीय समाज तंत्र की बुनियाद हिलाकर रख दीं हैं। धन बटोर कर ये "रोंग नंबर", अपने हरम गरम रख रहे हैं। और पाखण्ड के पोल खोल देने के अभिनय कर स्वयं सबसे बड़ा पाखण्ड या करते हैं।
लेखक ने पहले भी लिखा है
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दुनिया भर की बुराई से आगाह करने के अभिनय करने वाले , सिने और सिने सोसाइटी की बुराई तो बताओ ।
--राजेश जैन
11-01-2015
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पी नहीं , फिल्म देखी। लेखक की दृष्टि सिनेमा को, सिने कलाकार को बुराई का पिंड मानने के पूर्वाग्रह (Biased) से ग्रसित है , इस दृष्टि से देखने पर लेखक की निम्न प्रतिक्रियायें हैं -
1. पीके , का किस सीन अब बच्चे अपने पेरेंट्स साथ सहजता से देख रहे हैं , जल्दी ही भारतीय सड़कों पर ये दृश्य आम हो जायेंगे।
2. कार का जो उपयोग अभी कम ही जानते हैं , इस फिल्म की लोकप्रियता साथ सब जान जायेंगे। हाई स्कूल के बच्चे अब माँ -पिता बाइक की नहीं कार की जिद करेंगे।
3. पीना तो पुरुष के लिए भी अच्छा नहीं , अनुष्का के माध्यम से वर्किंग लेडी में ड्रिंक्स को सामान्य रूप में लेने को पीके प्रेरित करती है।
4. विवाह पूर्व सेक्स भी सामान्य सी बात है, फिल्म द्वारा यह ,पुनः इस रूप में दिखाया गया है।
5. 2 घंटे के साथ में ही , अंतरजातीय , अंतरराष्ट्रीय दो अजनबियों में ऐसा प्रेम हो जाता है कि दूसरे दिन विवाह कर सकते हैं। फिल्म ने यह परोसा है। जिसे फॉलो कर अनेकों युवा मुसीबत गले लगा चुके हैं।
आकर्षक पैकेजिंग -प्रेजेंटेशन
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अच्छी पैकेजिंग में सडा ,हानिकर भी हम ,मजे से खा लेते हैं। अपना नुकसान करा के विक्रेता /निर्माता को मालामाल बना देते हैं। ऐसा ही यहाँ है , करोड़ों की पैकेजिंग के साथ , लोकप्रिय कुछ कलाकारों के साथ , हमारे समाज को हानि देते षणयन्त्रों को छुपाकर हमें यही नहीं अनेकों फ़िल्में प्रेजेंट कर रही हैं।
पहली बार लेखक की अति आक्रमकता
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सब धर्मगुरुओं को "रोंग नंबर" बताने वाले , सबमें बड़े "रोंग नंबर" यही हैं। जी , हाँ ये फिल्म वाले।
"मंदिर, देश में बहुत नारी-पुरुष , जाते हैं !
मस्जिद कुछ कम जाते हैं !
गुरद्वारे और चर्च और कम जाते हैं!
किन्तु सिनेमंदिर जिनमें ये "रोंग नंबर" बैठे हैं!
बडे -बूढ़े नारी पुरुष हर बच्चे जाते हैं "
क्या पाता है बच्चा वहाँ से ?
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माता पिता को भुला वहाँ से
"रोंग नंबर" फैन हो जाता है
और
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वासना लिए घूमता नज़रों में
मर्यादा नारी से भूल जाता है
और भी
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समय बर्बाद फेवरेट के पीछे ,
कर पढ़ने में पीछे रह जाता है
क्या देता , क्या लेता इनसे ?
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इनको प्रौन्नत धन व्यय से करता
स्वयं अभावों से जूझता रह जाता है।
कब तक हम पैकेजिंग और प्रेजेंटेशन के अंदर के , घातक तत्वों को पहचानने की दृष्टि नहीं पायेंगे। कब तक अच्छे दिखते के प्रलोभनों में आ अपना जीवन , ख़राब करते जाएंगे? कब तक ?
सिने मंदिर की सच्चाई
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ये सिने मंदिर कोई जाये न जाये। सबमे बड़े ये "रोंग नंबर" , टीवी के माध्यम घर घर पहुँचे हुए हैं , करोड़पति बनाने के सपने और सत्य दिखलाने के धोखे में , गर्ल फ्रेंड -बॉयफ्रेंड चक्कर , नारियों में ड्रिंक्स , विवाहेत्तर संबंध आदि जिसने भारतीय समाज तंत्र की बुनियाद हिलाकर रख दीं हैं। धन बटोर कर ये "रोंग नंबर", अपने हरम गरम रख रहे हैं। और पाखण्ड के पोल खोल देने के अभिनय कर स्वयं सबसे बड़ा पाखण्ड या करते हैं।
लेखक ने पहले भी लिखा है
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दुनिया भर की बुराई से आगाह करने के अभिनय करने वाले , सिने और सिने सोसाइटी की बुराई तो बताओ ।
--राजेश जैन
11-01-2015
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