Friday, January 16, 2015

'साहित्य साधन' है- 'साधना' नहीं

'साहित्य साधन' है- 'साधना' नहीं
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इस लेखक/कवि का 'साहित्य साधन' है, 'साधना' है -

1. नारी में चेतना और उनका सम्मान देखना
2. मानवता पोषित करते हुए समाजहित देखना
3. स्वयं और सभी को 'संभ्रांत' देखना 

समय -समय पर साहित्यिक दृष्टि से कमजोर प्रस्तुति से साहित्य में कमजोर होने का उल्लेख लेखक के ध्यान में लाया गया है। कविता की विधा भी पूँछी गई है। वहाँ लेखक इसे चुप्पी से स्वीकार करता रहा है .

लेखक , एक कला और सीख रहा है , इसमें भी प्रस्तुति अभी कमजोर है। यह है "शब्दों से भविष्य की तस्वीर खींचने की"। इसी प्रयास में पूर्व पोस्ट में

1. 2075 का समाज मॉडल दिया है ,
2. 2315 में क्या हो सकता है तस्वीर दी है।
3. शोषित नारी प्रतिक्रिया में अब गर्भ में कन्या भ्रूण नहीं , नर भ्रूण को मारने वाली शब्द तस्वीर खींची है।
4. बच्चे की प्रसव क्षमता पुरुष , में भी आना यह चित्र भी खींचा है।
5. पीके द्वारा दिया गया चित्र पढ़ उसकी ,समीक्षा प्रस्तुत की है।

सबका कुछ समर्थन और कुछ विरोध हुआ है। लेखक ने लालन पालन देखा है , 5-6 वर्ष की उम्र में दादी उसे कहती थीं , पीछे तालाब में हाथी डूब गया था , वहां न जाया करो (ममत्व). दादा 16 -17 की उम्र में कहते थे , बेटे , स्टेशन पर क्रॉस पुल पर से करना , पटरी से नहीं (अपनत्व). यह ,ममत्व है अपनत्व है , जो कम अनुभवी /मासूम को आगाह करता है , परामर्श देता है। दृश्य तो डरावना देखते हैं , वे बड़े , लेकिन बताते बच्चे को हैं। ताकि ऐसा कुछ बुरा बच्चे का न हो , जैसा उनके भय /कल्पना में आया है।

लेखक , समाज को अपना मानता है , राष्ट्र को अपना मानता है। मानवता -विश्व में पल्लवित होते देखना चाहता (अपनत्व) है। पुरुष है लेकिन माँ की ममता सी लिए आता (ममत्व) है. जिस भयानक परिदृश्य की कल्पना देखता है , उसकी भयानकता से समाज को बचा लेने की ,नारी की रक्षा कर लेने की बच्चे के हित कर लेने की कामना लिए प्रतिदिन लिख आप सब के समक्ष आता है .उद्देश्य संकट में डालने का नहीं , भयानक करने का नहीं। बुराई की भयानकता से बचने /बचाने का होता है।

10 नव. 2012 में साहित्यिक दृष्टि से हल्की प्रस्तुति के माध्यम से। नौसिखिया इस कवि ने प्रस्तुति दी थी। आज यह पुनः प्रस्तुत है ( यह लेखक /कवि के हृदय की यह तस्वीर है )

पीड़ा मुझे हो जाती है
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जब देखता चलकर बहुत ,थक जाता है कोई पथिक
पैदल चलने के सिवा नहीं ,पास उसके कोई विकल्प
व्यय नहीं कर सकता वह, लेने कोई वाहन सेवा में
प्रतिदिन देख कई दृश्य ऐसे ,पीड़ा मुझे हो जाती है

सार्वजनिक स्थलों में ,विक्षिप्त दिखते कई पड़े ,घूमते
हो जाने पर अवस्था ऐसी ,त्यागा उन्हें स्वयं अपनों ने
ठण्ड में सिकुड़े पड़े किसी कोने में ,तब भी रहें ठिठुरते ही
भूखे ही शायद वे हों ,द्रष्टव्य इनसे पीड़ा मुझे हो जाती है

मासूम कई किशोरवय में ही ,भटकते हैं प्लेटफार्मों पर
जन्मे कोख से नारी के, शिकार हुई किसी कामी की जो
या अनाथ हो अबोध उम्र में ,चल बसने से माता पिता के
शोषण होता देख इन मासूमों का ,पीड़ा मुझे हो जाती है

गीतकार कामना में धन की ,रचना देते हलके अर्थ की
रचते गीत नाम प्रयोग कर शीला ,मुन्नी और चमेली
निकले जब गृह से नारी ,लेकर प्रयोजन घर बाहर के
गाते मजनूँ लक्ष्य कर नारी को ,पीड़ा मुझे हो जाती है

सजती हैं दुकानें ,भव्य और सुन्दर कई सामग्रियों से
आता कोई क्रय करने जब ,जरुरत पर इन्हें अपनों की
सुनता जब कीमत ,पसंद होने पर लौटे वह मनमसोसे
विवशता पर ऐसे क्रयकर्ता की ,पीड़ा मुझे हो जाती है

ये हैं उदाहारण कुछ थोड़े ,पर दृश्य उत्पन्न रोज अनेक
विश्व में मानव संस्कृति विकसित हो गई जब इतनी
हैरान समाज व्यवस्था वंचित कोई क्यों? इस हद तक
बदल सकूँ सामर्थ्य नहीं अतः ,पीड़ा मुझे हो जाती है

'राजेश', कहते हैं लेखनी में कवि की ताकत बहुत है
इसलिए मै बना कवि ,क्या मिलता सामर्थ्य मुझे है ?
बदले इस परिदृश्य को ,जगा सकता हूँ ऐसी चेतना?
क्योंकि दयनीय ये दृश्य देख ,पीड़ा मुझे हो जाती है

--राजेश जैन
17-01-2015

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