Thursday, January 22, 2015

भारतीय से आगे बढ़ती पाश्चात्य नारी


भारतीय से आगे बढ़ती पाश्चात्य नारी
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लेखक ने अनेकों पूर्व पोस्ट और पंक्तियों में पाश्चात्य नारी की भर्त्सना की है। भारतीय नारी को उत्कृष्ट कहा है। लेकिन लगता है शीघ्र ही भारतीय नारी पर पाश्चात्य नारी , अग्रता ले लेने वाली है। अभी पाश्चात्य नारी हमसे पीछे है , सुविधा प्रलोभनों से दुष्प्रभावित है।  पुरुष से समानता के नारे में उसने , पुरुष से जिन बातों में समानता प्राप्त की है , वह पुरुष की अच्छाई से कम , उसके दुर्गुणों से ज्यादा की है । अभिप्राय यह है कि पाश्चात्य विश्व में नारी , पुरुष  दुर्गुणों से बराबरी करने में सफल हुई है। और इस कारण पुरुष की अतृप्त देह-भूख की पूर्ती का साधन (वस्तु ) बन गई है। इस बराबरी में वह आज आगे , और हमारे यहाँ की भ्रमित नारी पीछे है। बुराई में पीछे रहने के कारण , अच्छाई के दृष्टिकोण से देखने पर हमारी नारी अभी तक श्रेष्ठ है।


नारी भी मनुष्य मस्तिष्क रखती है इसलिए जो  पाश्चात्य नारी आज के प्रचलन में आगे है। वह बुराई से ठोकर खाने में भी आगे रहेगी और इस ठोकर से जीवन सीख पहले ग्रहण कर राह बदल कर भारतीय नारी से श्रेष्ठता छीन सकती है। भारतीय नारी(और पुरुष) की बुध्दिमत्ता की यहाँ परीक्षा है। अगर वह दूसरे के ठोकर से सबक लेकर , ठोकर खाने से बच सकेंगे तब भारतीय नारी श्रेष्ठ रह सकती है।  अन्यथा पाश्चात्य नारी अच्छाई में आगे हो जायेगी।


"नारी - पुरुष समानता" का लेखक का संकल्प है , लेखक का प्रबल समर्थन है। लेकिन शर्त यह है कि नारी , पुरुष के सद्गुणों में , और पुरुष , नारी के सद्गुणों में समानता की होड़ करें।


--राजेश जैन
22-01-2015

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