Thursday, January 22, 2015

गरिमा

गरिमा
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मैरिज को 10 माह हो चुके , तब चेतन (पापा) ने , गरिमा से पूछा , बेटी सुदृढ़ कैसे हैं , अच्छे निभाते हैं , तुम्हें ?
गरिमा - पापा , सुदृढ़ बहुत अच्छे हैं , थैंक्स , आप और ममा का सेलेक्शन बहुत अच्छा है।
चेतन (समझाने वाले स्वर में ) - बेटी , तुम्हारा जजमेंट भी तो शामिल है ,(कुछ रुककर) बेटी , अच्छा और बुरा सबमें होता है। तुममें भी होगा , मानती हो ?
गरिमा -हाँ , पापा।
चेतन - लेकिन हमारे सामने जब कोई अच्छा है , तो हम , व्यवहार में अपने बुरा का -उपयोग  करते हैं ?
गरिमा (प्यारे स्वर में ) -ना , पापा।
चेतन - सुदृढ़ , अच्छे हैं , अपनी अच्छाई से ही उन्हें निभाना , जैसा करती आई हो कोशिश करना। अच्छे व्यक्तियों के सर्किल में रहना , पता है क्या होगा ?
गरिमा (इठला कर ) - क्या , पापा ?
चेतन - बेटे ,जानती हो , मनुष्य की भी पूँछ , हुआ करती थी।
गरिमा - पापा , पढ़ा है।
चेतन - पूँछ का प्रयोग न करने पर , वह मनुष्य शरीर से लोपित हो गई।  वैसे ही अच्छे व्यक्तियों के सम्पर्क में हम रहेंगे , अपने में से बुरा का प्रयोग हमें न करना होगा तब , हमारे मन और स्वभाव से बुराई विलोपित हो जायेगी।
गरिमा (शंका मिश्रित स्वर में ) - ऐसा हो सकता है ?
चेतन - बल्कि , इससे अधिक हो सकता है , हमारा यह अच्छा सर्किल , बड़ा हो सकता है , और उतने में से , बुराई विलोपित हो सकती है।
गरिमा (लाड़ से )- मेरे प्याले पापा।
चेतन (दुलार से )  - मेरी , प्याली बेटी।
--राजेश जैन
23-10-2015

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