Tuesday, January 20, 2015

नारी परिधान

नारी परिधान
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 वास्तव में जीवन में रचनात्मक या अच्छा कुछ करने के लिये एक आत्मविश्वास का होना आवश्यक होता है।  अलग अलग व्यक्ति कई अलग अलग तरह से यथा - ज्ञान से , धन से , रूप से ,बल से , यौवन से और अन्य तरह से अपने में आकर्षण लाकर अपने लिये उस आत्मविश्वास की व्यवस्था करते हैं। आज कई तरह की एक्सेसरीज (बँगला ,गाड़ी , महँगे गैजेट्स आदि) भी व्यक्तित्व के आकर्षक दिखाने में सहायक होते हैं।  परिधान भी कुछ मूल आवश्यकताओं की पूर्ती के साथ ही , आकर्षण उत्पन्न कर सकता है।  
भारतीय नारी पहले ,मुख्य रूप से गृहस्थी और रसोई में सीमित थी। उनके पारम्पारिक परिधान , घर के उन कार्यों के अनुरूप होते थे। नारी अब ,घर से बाहर आई है।  ग्रह -परिधान में रहकर , व्यवसाय ,यात्रा और मार्केट असुविधाजनक होता है। लेखक थोड़ा पुराने परिधान में जैसे (साड़ी , चूड़ीदार ) आदि में नारी में पर्याप्त आकर्षण देख लेता है . अगर अपने स्वयं के लिये फील्ड वर्क में जीन्स सुविधाजनक अनुभव करता है । इस सुविधा दृष्टि से  पुरुष ने अपनी वेशभूषा बदली है .निश्चित ही , नारी भी आवश्यकतानुसार बदलने की अधिकारिणी होती है।
पुनः आत्मविश्वास पर बात करता हूँ।  नारी अपने कार्य /क्षेत्र अनुरूप जिस भी परिधान में आकर्षण के साथ आत्मविश्वास अनुभव करे , उसे छूट है। लेकिन सभी परिधान , सभी को उम्र , दैहिक गठन के कारण सूट नहीं होते हैं। सिर्फ देखा देखी में कुछ भी कहीं पर पहनने से आवश्यक नहीं की अपना आत्मविश्वास बढ़ता ही हो। लेखक ने देखा , कुछ ग्रामीण क्षेत्र की युवतियाँ ,नगरों में आने पर आधुनिक परिधान , नकल में पहन लेती हैं।  उन्हें नया होने से स्वयं में अजीब सा लगता है।  बार -बार वस्त्रों को सहेजने में लगी रहती हैं। नहीं लगता की , आधुनिक परिधान से उसका विश्वास बढ़ रहा है , बल्कि विश्वास डिग रहा होता है।
समय और स्थान भी परिधान की उपयुक्तता पर विचारणीय होते हैं। निश्चित ही समुद्र किनारे के कपड़े पहन कर कोई कार्यालय/मंदिरों में नहीं आयेगा। किन्तु आ जाये तो उचित नहीं लगेगा। हाँ क्रिकेट , पूरे कपड़े पहन कर खेला जाता है , लेकिन तथाकथित महान , शर्ट लहराकर ,  नग्नता दिखा ,प्रशंसकों को गलत सीखने को दुष्प्रेरित करते हैं। किसी के उकसाने पर या प्रतिक्रिया नहीं हों , सोच समझकर , यदि नारी अपने वस्त्र तय करती है , तब उनके सभी परिधान उचित ही हैं।
जो भी हो , धन अभाव , शिक्षा अभाव में या अन्य भ्रमों में नकल करते , कोई नारी जब अजीब वस्त्रों में दिखती है।  सच कहूँ , न वासना , न हास्य उपहास और न ही आलोचना लेखक की दृष्टि में आता है।  बल्कि , उनके अभाव से ,अजीब सी इस गलती से एक करुणा ही मन में उमड़ती है।
नारी के आधुनिक परिधान में होना , उसका कोई आमंत्रण नहीं है , इसे समझना चाहिये। अगर आकर्षक वह दिखना चाहती है या दिखती है। वह सिर्फ उसकी इक्छा और आत्मविश्वास के यत्न माने जाने चाहिए । जिस तरह आकर्षक पुष्प को पौधे से तोडना , बगिया की रौनक मिटा देता है। उसी तरह आकर्षक परिधानों में नारी पर ललचाई दृष्टि , उसपर छींटाकसी या उस पर अत्याचार , उसे कुम्हला देगा। सुंदर दिखती इस दुनिया की विशिष्ट सुंदरता मिटा देगा। आप ऐसी दुनिया में रहना चाहेंगे , जहाँ नारी लबादों सिमटी , डरी -उदास सी पड़ी है ?
नारी कुछ भी पहने , स्वतंत्रता उसे होनी चाहिये।  पुरुष की दृष्टि , अवश्य दोषरहित होनी चाहिये।

बिता के दिन जीवन के कहाँ स्वयं आया है ?
खोने को नहीं कुछ यहाँ क्या हमने पाया है ?
लक्ष्यहीन जीवनयात्रा बिन समझें न तय करें
जो दिलाया दूसरों को नेट वही हमने पाया है

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
परिपूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है


 --राजेश जैन
21-01-2015

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