Thursday, January 10, 2013


Zozila to Rohtang -- यात्रा वृतांत - एक कल्पना (भाग -2 )
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10  दिवसीय भ्रमण कार्यक्रम क्रियान्वित होना इस तरह आरम्भ हो गया  था . दिन था 26 अगस्त 12 ,  10 दिनों बाद 4 सितम्बर भी कैलेंडर में आना ही था . देश समाज या विश्व में होने वाले घटनाएँ तो होनी ही थीं .पर इन मित्रों को इन 10 दिनों में दिनचर्या से भिन्न  कुछ और कर दिखाना था . किसी अन्य के सामने कुछ विशेष सिध्द करना हो ऐसे मंशूबे तो ना थे . पर अन्य दिनों से से भिन्न ये दिन उनके लिए साबित होने वाले थे .
गाड़ी हाई वे पर आ चुकी थी . स्वयं इन की गाड़ी रफ़्तार में  भाग ही रही थी . दूसरी दिशा से आने वाले वाहन भी रफ़्तार में चल रहे  थे .आवागमन संख्या भी बहुत थी . कभी पीछे से ज्यादा गति के शौकीन वाहन चालक इन की गाड़ी को ओवर टेक कर रहे थे .
 जबलपुर से निकले कुछ वक्त बीता तो , घर परिवार के तरफ से ध्यान हटने लगा था . इस तरह भावुकता से निकल सामान्य होते हुए  इनके बीच सामान्य चर्चाएँ प्रारम्भ हो गईं थी . सामान्य गतिविधि जैसे जल , गरम पेय , रिफ्रेशमेंट इत्यादि का क्रम भी चला था . बहुत जल्दी जल्दी तो नहीं पर गाड़ी , ड्राईवर को आराम देने उचित स्थानों पर ये रुकते चलते बढ़ रहे थे .
 सामान्य चर्चाओं के बीच  गंभीर प्रसंग पर विचारों का आदान प्रदान भी बीच में हो रहा  था . जो यह कहता था --10 दिनों में इन्हें बहुत सी बातें सिध्द करने का दायित्व था . लम्बे कार्यक्रम में जिसमें  यात्रा की थकान , अनियमित खानपान और तुलनात्मक रूप से कम आराम-दायक स्थिति में अपने स्वास्थ्य को बनाये रख अपने को फिट सिध्द करना था .
रोमांच-प्रेमी मित्र जिनके सुझाव से लद्दाख के मनोरम घाटियों की  दुर्गम यात्रा के बीच अभूतपूर्व आनंद है ,उनपर अन्य मित्रों के सम्मुख इस बात में सच्चाई को सिध्द करने का भार  था .
फोटोग्राफर मित्र को मनोरम प्रकृति को विभिन्न  कोणों से मनभावन छायचित्र कैमरे में कैद कर अपनी यह योग्यता मित्रों के सम्मुख पुनः सिध्द करनी   थी .
 चारों को ही  ,दुर्गम पथ जिस पर जरा सी असावधानी से चलने में अनहोनी की आशंका का भय  तथा  पीछे छोड़ कर आये परिवार  की कुशलता की चिंता और घबराहट पर भी काबू कर अपने को साहसी सिध्द करते हुए , प्रकृति की उस छटा जिसे "पृथ्वी का स्वर्ग" कहा जाता है का पूर्ण आनंद भी उठाना था  .
 इस तरह के साथ भ्रमण से आपसी सामंजस्य से  मित्रता  में प्रगाढ़ता बढती है यह भी सिध्द करना था .
कुल मिलाकर अपने को स्वयं के सामने ही सिध्द करना था . अपने को स्वयं के सामने सिध्द करने से आने वाला विश्वास अपने जीवन को सार्थक करने के लिए बहुत उपयोगी होता है . जीवन में  विभिन्न समय में अलग अलग प्रसंग पर स्वयं के सामने सिध्द करने के कुछ अवसर सभी को मिलते हैं  . 10 दिन का यह भ्रमण इन  चारों  के जीवन में इस तरह का एक अवसर था .
लगभग सोचे समझे ढंग से ही पहला  दिन   व्यतीत हुआ था . उनकी गाड़ी अब पानीपत में उस होटल की पार्किंग में पहुँच गई थी , जहाँ उन्हें रात्रि विश्राम करना था ...

जारी क्रमशः ----

--rajesh jain 10-01-13 (काल्पनिक वर्णन )

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