Friday, January 18, 2013

जीते जी और मरते तक अतृप्त

जीते जी और मरते तक अतृप्त  
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छोटे से अपने मनुष्य जीवन में मिलते मात्र हैं ८० वर्ष
भोग उपायों और उपभोग सम्मोहन में जाते जो हैं व्यर्थ

विषय इन्द्रियों को भिन्न साधनों से करता रहा था तृप्त
नैतिकता व न्याय बोध इसके खातिर कर दी थी त्याग

अंत बेला पर कर चमत्कार वैद्य ने बढा दी उम्र आधे वर्ष
जीवन भर थी जो आसक्ति उन्हीं पर फिर करने लगा खर्च

सत्तर हजार बार करने पर पूर्ति भी भरा नहीं था पर उदर
चार सैकड़ा बार और अच्छा खा लूं लगाने लगा पुनः जुगत

फिर ना मिलेगा अवसर साथ पाने का मधुर साथियों का
एक एक को बुलाया रख लेने छवि ह्रदय में अंतिम वक्त

अनमोल मनुष्य जीवन उपभोग सम्मोहनों में हुआ ख़त्म
दो दिन किया मातम प्रिय जुटे फिर स्व-उपभोग सम्मोहनों में
 
व्यथित राजेश ये अंजाम देख मनुष्य जीवन जो होता अनमोल
ना छोड़े दया ,करुणा ,न्याय और नैतिकता साथ तो तब कुछ जायेगा 
 
आडम्बर उपभोग के पीछे भागते हमेशा जीवन में ना मिला संतोष 
मृगतृष्णा सा भटका जीवन भर, जीते जी और मरते तक अतृप्त  
 

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